Wednesday 9 May 2012

कोई मिले तो कटे सर्दी की दुपहरिया

आज सर्दी अचानक बढ़ जाने से कहीं जाने का मन नहीं कर रहा है.
राजू को फोन किया तो वह अजमेर से बोल रहा था. परसों आएगा. मैं मरी जा रही थी की कोई मिले तो सर्दी की दुपहरिया कटे.
अचानक याद आया कि मेरी भाभी का एक भाई मनीष पढ़ाई करने की नीयत से जयपुर आकर रहने लगा है. ढूँढा तो उसका नंबर भी मिल गया.
मैंने कहा भइया, मेरी तबियत जरा नरम हो रही है. मेरे कमरे पे आ जाओगे क्या?
वह तुरत राजी हो गया. मैं नहीं जानती थी कि उसके मन में क्या था. लेकिन मेरे मन में तो बस एक ही बात रहती
है- लड़का मिले तो चुदाओ.
कोई डेढ़ घंटे लगे उसे मेरे कमरे पर पहुँचने में. घंटी बजी तो बाहर जाकर के दरवाजा मैंने ही खोला. मकान मालिक जानते हैं मेरे यहाँ लोग आते-जाते रहते हैं. सो उसकी कोई समस्या कभी रहती नहीं है.
मुझे ठीक-ठाक देख के मनीष जरूर परेशान सा लगा. उसने पूछा- दीदी, क्या हुआ आपको?
मैं बोली- अभी दो गोलियां खाई है तो आराम मिला है. रिस्क लेना नहीं चाहती इसलिए तुम्हें बुला लिया है.
झूठ को आगे बढ़ाते हुए मैंने दरवाजा बंद किया और मनीष को अपने पीछे आने का इशारा करके अपने कमरे की ओर बढ़ गयी.
मैंने कहा- मनीष मेरा सर चकरा रहा है. पहले दो कप चाय बना दो, फिर जरा मेरा सर दबा देना.
उसने बड़ी ख़ुशी से हाँ कर दी और चाय बनाने की तैयारी करने लगा.
मैंने झूठ-मूठ के कहा कि आज मेरा पीरियड का पांचवां दिन है. ब्लड आना तो बंद हो गया है, लेकिन मेरे कमर और पेट में काफी दर्द है.
पीरियड की बात सुन करके वह थोड़ा झेंप सा गया. कुछ बोला नहीं. दर्द की गोलियां तो मेरे पास रहती ही हैं. मैंने  कहा कि वह जरा डब्बे को खोल करके उनमें से कोई दर्द-निवारक गोली निकाल लाये.
मनीष ने पहले तो चाय बनाया फिर दवा के डब्बे को लाकर के मेरे सामने रखने लगा.
मैंने कहा- मुझसे कुछ नहीं देखा जा रहा. सर चकरा रहा है. तुम खुद ढूंढो.
उसने देखना शुरु किया तो उसे गर्भ-रोधी गोलिया भी मिलीं. मैं यही तो चाहती थी.
उसने जब उन गोलियों को देखा तो उसकी नजरों में वही सब कुछ चमकने लगा जो सब मैं चमकाना चाहती थी.
उसने पूछा- दीदी, इन गोलियों को कौन खाता है?
मैंने पूर्ण सादगी से कहा- मैं ही खाती हूँ जब जरूरत पड़ती है.
मनीष उतना भी भोला नहीं था. फिर उससे मेरा मजाक करने का रिश्ता भी बनता था.
उसने मुस्कराते हुए कहा- फिर आज जरूरत पड़नी ही चाहिए. मैं जो हूँ.
मन ही मन मैं इतरा उठी. मेरी भूमिका तो बन गयी थी. फिर भी मेरा नाटक जारी रहा.
मैंने कहा -तुम्हें मजाक की पड़ी है. यहाँ मैं मरी जा रही हूँ.
मनीष ने तुरंत 'सारी' कहा और मेरे नजदीक आकर मेरे सर पे हाथ फेरने लगा. बोला- पहले चाय पी लो दीदी. फिर मैं सर दबा दूंगा.
सर्दी तो थी ही, मैं कम्बल ओढ़ के पड़ी रही.
मनीष ने जब चाय पीने के लिए दुबारा कहा तो मैं धीरे से बैठी हो गयी और चाय की प्याली पकड़ ली.
चुस्कियां लेते हुए मैंने कहा कि वह जरा पानी भी गरम कर दे ताकि हॉट बैग से मैं पेट की सिकाई भी कर लूं.
बिलकुल ही आज्ञाकारी प्राणी की तरह वह मेरे आदेश का पालन करता जा रहा था.
चाय पीने के बाद मैं फिर लेट गयी और कम्बल अपने ऊपर डाल लिया.
मनीष थोड़ी ही देर में हॉट बैग को भर लाया. मैंने उसे हाथ में लेना चाह तो उसने मना कर दिया. बोला- आप रहने दो. मैं सेंक देता हूँ.
बैग ज्यादा ही गरम था. लेकिन उससे भी ज्यादा तो मेरी चूत गरम होकर पानी छोड़ रही थी.
मनीष ने कम्बल हटाना चाहा तो मैंने कहा की मुझे सर्दी लग रही है. कम्बल मत हटाओ. उसके भीतर से ही सिकाई कर लो.
मुझे पता था कि परदे में मनीष को हरकत करने में सुविधा होगी. मैं वही तो चाहती थी. नहीं तो इतनी दूर परेशान करने कि क्या जरूरत थी.
मनीष ने पूछा कि दर्द कहाँ हो रहा है. मैंने पेट के निचला हिस्सा बता दिया.
कम्बल के भीतर से पहली ही कोशिश में उसका हाथ मेरी चूत से टकराया. चाहे जानबूझ के या अनजाने में. मैंने मुस्कारे के मनीष को एक नशीली मुस्कान के साथ देखा फिर प्यार से झिड़कते हुए बोली- कोई बदमाशी नहीं करनी.
मनीष बोला- चिंता मत करो. मैं बस वही करूंगा जो करना है.
उसने बैग तो मेरे पेट पर रख दिया और चूत को मेरी सलवार के ऊपर से ही सहलाने लगा.
अब नाटक करना बेकार था. मैं मजे के मारे ऐठने लगी थी. बैग मैंने अलग फेंक दिया और मनीष को खींच के अपने सीने से लगा लिया. अब क्या था. मनीष भी मुझसे चिपट कर मेरे होंठों को चूसने लगा.
उसके हाथ मेरी समीज के भीतर घुस गए और मेरे बूब्स को दबाने-सहलाने लगे.
मैंने मनीष का शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए तो वह पीछे हट गया और खुद ही कपड़े उतरने लगा.
शर्ट दूर फेंकने के बाद उसने अपनी जींस भी उतार दी लेकिन चड्ढी उतारे बिना ही वापस मेरे ऊपर चढ़ गया.
उसने मेरी समीज ऊपर करनी शुरू कर दी तो मैंने उसे पीछे धकेल कर हटाया और खुद ही अपनी पोषक से आजाद होने लगी.
अभी बमुश्किल मेरी बूब्स दीखनी शुरु हुई ही थी कि उतावला मनीष उनसे लग गया. एक को दबाया और दूसरी को चूसना शुरु कर दिया.
मैंने हंस कर कहा- कपड़े तो उतार लेने दो भई.
लेकिन बिना बोले वह तो लगा रहा. इसके पहले कि मैं सलवार तक पहुँचती, मनीष ने ही उसका नाड़ा खोल दिया. मैंने न तो ब्रा पहना था न ही चड्ढी.
मनीष को सब बड़ा प्यारा लग रहा था. वह सरकते हुए मेरी चूत तक पहुँच गया और अपनी जीभ मेरी फांक में डाल दी.
उसने अपनी दोनो हथेलियों से मेरे दोनो जांघों को अलग फैलाया और फिर अपनी उँगलियों से चूत को चौड़ी करते हुए अपनी जीभ और भी भीतर ले जाते हुए मेरी चूत-घुंडियों को चाटने लगा.
इतना मजा हर कोई नहीं दे पाता है. मुझे पहले पता नहीं था कि यह लड़का इतना एक्सपर्ट निकलेगा.
काफी मजे लेने के बाद मैंने कहा- अब मुझे अपना लंड चूसने दो.
मनीष पीछे हटा तो मैंने देखा कि उसकी चड्ढी तम्बू बन रही थी. उसने खुद ही अपनी चड्ढी उतारी और आगे बढ़ के अपना लम्बा सा लंड मेरे मुंह में दे दिया.
लंड को चूसने का काम मैं भी बखूबी कर लेती हूँ. जब मैंने अपनी कलाकारी दिखानी शुरु करी तो मनीष ने मुझे बालों से पकड़ लिया और अपना लंड मेरे गले तक पहुंचा दिया.
मैंने अपनी एक हथेली से उसके अन्डकोशों के नीचे की जगह को सहलाना शुरु कर दिया.
बस विस्फोट हो गया.
मनीष ने अपना पूरा माल मेरे मुंह में ही निकाल दिया.
मैंने एक भी बूंद बाहर नहीं जाने दिया. मनीष का चेहरा बता रहा था की उसे कितना जोर का मजा आ रहा था.
मेरी चूत प्यासी रह गयी थी.
मनीष को इस बात का मलाल भी हुआ तो मैं बोली- कोई चिंता न करो. आज मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दे रही. आओ मेरे साथ कम्बल में समां जाओ. गरम होकरके फिर करेंगें. अब भी और रात में भी. मेरी तबियत अब नरम नहीं गरम है.
मनीष कुछ नहीं बोला. बस मेरे होठों को चूसता हुआ मेरे ऊपर चढ़ गया. मैंने एक हाथ से ही कम्बल खींच के अपने दोनो पर डाल लिया.

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