Wednesday 9 May 2012

मामाजी, अब तो बस चोद ही दो

मेरी उम्र 24 साल है, कुंवारी हूँ और मेरे घरवाले सब कल्याण में रहते हैं. कुछ दिनों पहले मेरे एक मामा की पोस्टिंग कल्याण में हो गयी. वो एक बहुत सीनियर  प्रशासनिक पद पर हैं. हालाँकि वो मेरे सगे मामा नहीं तो हैं, मेरी माँ के घर के पास के रहनेवाले हैं, लेकिन हैं हम लोगो के बहुत ही करीब.
उनकी उम्र 40+ है. थोड़ा सा पेट निकला हुआ है, लेकिन मोटे तौर पर प्रभावशाली पर्सनालिटी है. चेहरे पर एक शालीन और सेक्सी मुस्कान निराहती है.
मेरी एक फ्रेंड जोया, जिसकी अब शादी हो गयी है मुझसे अक्सर कहती थी और अब भी कहती है कि लाइफ में शादी के पहले किसी उमरदराज आदमी के साथ सेक्स जरूर करना चाहिए.

वो रिश्तेदार टाइप हो तो और अच्छा रहता है. क्योंकि ये सेफ रहता है. इससे बहुत अच्छा एक्सपेरिएंस प्राप्त होता है और हाँ मजा भी बहुत आता है.
लेकिन में आप लोगों को बता दूँ कि जब तक मैंने खुद एक्सपेरिएंस नहीं किया था, मुझे उसकी बात हमेशा गलत लगती थी. मैं 21 साल की हो चुकी थी और सेक्सुअली बिलकुल अछूती थी.
हाँ कभी-कभी बाथरूम में अकेली दर्पण के सामने खड़ी होकर अपने सुन्दर सुडौल शारीर को निहारती जरूर थी और अपने हाथ अपने ही जिस्म पर फेरा करती थी. कभी-कभी अपनी निप्पलस को छेड़ती और कभी अपनी चूत को भी सहलाती थी.
मेरी हिम्मत कभी किसीसे चुदाई करने की नहीं हुई. हाँ, कई साथ के ऑफिस के लोगों के प्रति आकर्षण जरूर हुआ. कुछ से बात और भी आगे बढ़ी लेकिन सेक्स नहीं किया. कभी न हिम्मत थी, न ही कर पाई.
हाँ, तो मेरे मामाजी अक्सर हम लोगों के घर आते थे. उनकी पत्नी यानि मेरी मामी बहुत ही सुन्दर हैं. उनकी जोड़ी बहुत ही अछि है. मेरे मामा और मेरी दोस्ती भी बहुत गहरी है.
वो बहुत फ्री किस्म के इन्सान हैं. लेकिन हर किसी से नहीं. आम टूर पर अन्य लोगों के लिए सिरिअस ही रहते हैं. मेरा-उनका तो अब खूब मजाक भी होने लगा था. एक दिन मामाजी ने मुझे एक मेसेज किया की तुमको मालूम है रानी मुखेर्जी का किससे अफेयर चल रहा है. मैंने कहा मुझे क्या मालूम. तब उन्होंने एक और मेसेज भेज कर बताया कि उसका आदित्य चोपड़ा से चक्कर चल रहा है और उसको आदित्य चोपड़ा से चुदाई करवाते अमिताभ के किसी दोस्त ने देख लिया था. इसीलिए अभिषेक से उसकी बात आगे नहीं चली.
इस टाइप का मेसेज पढ़ कर मेरे सारे शरीर में एक सिहरन सी फ़ैल गयी. मुझे लगा कि कोई मुझे कसकर भींच ले. मेरी पैंटी में भी कुछ गीला सा लगने लगा.
मैंने उनके मेसेज का कोई जवाब नहीं दिया. कुछ दिन बाद मामाजी का एक  और मेसेज आया कि तुमको मालूम है अजय देवगन और काजोल में बहुत झगड़ा हो गया था. मुझसे रहा न गया और में  पूछ बैठी क्यों? उनका जवाब आया कि अजय देवगन ने शादी के बाद भी एक दिन शूटिंग पर काजोल को शाहरुख़ खान से चिपकते अकेले में मजे करते देख लिया था. वो उससे खूब लड़ा और कहा कि काजोल अब तो तुम्हें शाहरुख़ से कोई ताल्लुक की जरूरत नहीं होनी चाहिए. तुम दोनों ने शादी के पहले कितनी बार सेक्स किया मुझे मतलब नहीं. लेकिन अब तो मत मरने जाओ.
मैंने पूछा-मामाजी आपको कैसे ये सब मालूम हो जाता है.
वो बोले -मेरी जन, मेरे साथ के टैक्स ओफ्फिसर्स बॉम्बे की साड़ी खबरें सही-सही बता देते हैं.
अब में और मामाजी काफी फ्री हो गए थे.
रात को में जब कभी अपनी चूत पर हाथ फेरती तो शाहरुख़ खान की बात यद् आती. उसके बारे में सोचते हुए हाथ फिराती तो अचानक मामाजी का चेहरा सामने आ जाता. जैसे वो कह रहे हों कि "में क्यों नहीं?
एक दिन एक शादी में मामाजी और मै जा रहे थे. मम्मी ने कहा- सुनीता, घर से और कोई तो जा नहीं पा रहा. दो दिन की ही तो बात है, तुम मामा-मामी के साथ चली जाओ. और मुझे जाना पड़ा.
हमलोग पुणे गए और वहां राजधानी होटल में रुके. हमने दो कमरे बुक किये. एक में मामा-मामी साथ थे और दूसरे में मैं अकेली.
शाम को शादी के समारोह के बाद में अपने एक चचेरे भाई के साथ पुणे घुमने चली गयी. मामा-मामी शादी में ही थे.
कोई 9 बजे तक में होटल रूम वापस आ गयी और थकी होने के कारण जल्दी में सो गयी. अभी थोड़ी देर ही सो पाई थी कि रूम कि बेल बजी. मैंने घडी देखी तो रात के ११ थे. मैंने दरवाजा खोला तो सामने मामाजी थे.
मैंने पूछा- मामाजी आप अकेले कैसे? मामी कहा हैं?
वो मुस्कराते हुए बोले-तुम्हारी मामी अपनी किसी बहन के साथ रुक गयी हैं. 1 बजे तक आएँगी. फेरों के बाद. मैं चला आया. वो दरवजे पर खड़े थे. मैंने कहा- ओके मामाजी, अन्दर आ जाओ.
कमरे में सोफे भी थे लेकिन मामाजी सीधे मेरे बेद पर बैठते हुए बोले- तुम थकी न हो तो चलो कुछ देर बातें  कर लेते हैं. मैं राजी हो गयी.
रात के एकांत में मामाजी जैसे आदमी को कमरे में अकेले पा के अब मेरा मन चल चूका था. में कोई भोरी नहीं थी. मुझे साफ दीख रहा था कि मामाजी कि नीयत में क्या था. और जो उनकी नीयत में था वही तो मेरी भी नीयत में था. मैंने सोचा आज इनसे कुछ सेक्स की बातें सीख ही लूं. लेकिन मेरे अन्दर पहल करने की हिम्मत नहीं थी.
मामाजी जाने क्या बातें कर रहे थे. मुझे तो अपनी चूत में उठ रही सनसनी के मारे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था.
मेरी पैंटी के अन्दर कुछ गीलपन सा महसूस होने लगा था. मैं अभी से पानी छोड़ने लगी थी. मुझे लग तो रहा था की मामाजी के मन मैं भी कुछ वैसा ही हो रहा है. लेकिन उन्होंने कुछ किया नहीं. तभी मुझे अपनी फ्रेंड की सीख याद आई की अपने से उम्र के बड़े लोग सेक्स की पहल खुलेआम नहीं करते. उनका इतनी रात को अकेले आना इशारे मैं सब कुछ बयां कर रहा था.
अब मेरा तो मन हो रहा था अपनी जवानी का मजा लेने का. सो मैंने भी इशारे में बात शुरू कर दी. "मामाजी,  मामी के अलावा तो किसी पर आपका मन जाता  नहीं होगा? वो तो खुद बहुत सुन्दर हैं.
मामाजी बोले- हाँ, वो तो है.
मुझे लगा की मेरा हिंट बेकार गया.
लेकिन तभी मामाजी बोले- मन तो किसी पर गया है लेकिन उसका नहीं पता.
में बोली- उससे पूछ  लीजिये. डरना क्या?
मामाजी जल्दी से बोले नहीं. कुछ सोचते रहे. इस बीच मेरे दिल की धड़कन राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड की हो रही थी.
मामाजी फिर बोल उठे- अच्छा तो पूछता हूँ. तुम बताओ. मुझे तो तुम अच्छी लगती हो.
मैं शर्मा गयी और दूसरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी. तभी मामाजी ने मुझे बहुत धीरे से अपने सीने से लिप्त लिया. फिर मेरी आँखों पर किस कर दिया.
मैं सिहर गयी और बोली- नो मामाजी, यह ठीक नहीं है. हालाँकि मेरी पैंटी और चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थीं. मेरी चूत में पुक-पुक हो रहा था. तभी मामाजी ने मुझको और जोर से चिपटा लिया और मेरे गाल सहलाते हुए मुझे जहाँ-तहां किस करने लगे.
थोड़ी ही देर में वो मेरे लिप्स चूस रहे थे और में अपना होश खो रही थी.
उनके लिप्स अब मेरी गर्दन पर आ गए थे और हाथ  मेरे बूब्स को सहला रहे थे. में मदहोश हुई जा रही थी. मुझे पता ही नहीं चला कब उन्होंने मुझे बेड पर बड़े प्यार से लिटा दिया और जब तक मैं समझूँ मेरी पैंटी और ब्रा को बदन से बहुत दूर थे.
उनके लिप्स मेरी चूचियों को चूस रहे थे. मेरी चूत को पसीना आ रहा था.
मामाजी कह रहे थे- नौट्टी  डार्लिंग, अगर तुमको शाहरुख़ खान न भुला दूँ तो कहना. अब तक वो मेरी जांघों को सहलाते हुए मेरी चूत के नजदीक पहुँच चुके थे और अगले ही पल मेरी चूत को, जिसे मैंने कल ही हेयर-रिमूवर से साफ किया था, उसको किस कर रहे थे.
बड़े ही प्यार से. लेकिन भारी रोमांच से भी.
जब उनकी जीभ मेरी चूत के उपरी दरवाजे पर सांप की तरह सरसराते महसूस हुयी तो मैं मस्ती की तरंग में डूब कर चीख पड़ी. मैंने अपनी दोनों हथेलियों से उनके सर के बालों को पकड़ लिया और कमर को ऊँचा करके अपनी चूत को पूरी ताकत से उनके मुंह से अड़ा दिया. मन हो रहा था की चूत को उनके मुंह में भीतर तक डाल दूं.
मामाजी भी न जाने किस बदहवासी में मेरी चूत में मानों घुसे जा रहे थे.
मैं बुदबुदा रही थी- मामाजी अब नहीं रहा जा रहा. अब तो मुझे बस चोद ही दो. फक मी, प्लीज.  डाल दो अन्दर.
लेकिन मामाजी तो बस मेरी चूत को अपनी जीभ से चाटे जा रहे थे. खूब जोर-जोर से. वे कह रहे थे- तुमको आज इतने अच्छे से चोदूंगा मेरी जान, कि फिर कभी मुझे भुला नहीं पाओगी. मैं मदहोश, बेहोश हुई जा रही थी. तभी अचानक मामाजी उठे. उनहोंने दो तकिये लिए और मेरे नितंबों के नीचे रख दिए. इस तरह मेरी चूत ऊँची होकर के पूरी तरह खुल गयी.
मामाजी sइस्कारी लेकर बोले- आह, क्या चूत का सीन दिखा है. ऐसी तो eन्जेलिना जोली की भी नहीं होगी. उन्होंने ढेर सारी क्रीम मेरी चूत में भर दी और अपने कपडे उतर दिए. मैंने अब देखा कि उनका लंड तो 8 इंच से कम नहीं था.
अब मैं थोड़ी सी घबराई कि ये कैसे मेरी चूत में घुसेगा. मेरी चूत मुझे नन्ही सी लग रही थी. मैं उनसे निहोरा  करने लगी कि मामाजी धीरे से ही डालना. उन्होंने कहा कि तुम्हें बस यह यूँ ही छोटा लग रहा है. इसमें तो दुनिया समां जाती है और तब भोई जगह बची रहती है.
वे अब अपने लंड का पिंक टिप मेरी चूत में पुश करने की कोशिश कर रहे थे.
वो बार-बार स्लिप कर जाता था. फिर उन्होंने निशाना लगा कर अपना लंड मेरी चूत में अन्दर करीब 3 इंच घुसा दिया. मुझे लगा मनो किसी ने गरम लोहे की  मेरे मोटी राड मेरे अन्दर डाल दी हो.
मैं चिल्लाई- मामाजी प्लीज! इतनी जोर से नहीं. अब निकाल लो अपना लंड.
मामाजी ने लंड को एक बार बाहर को खींच लिया. लेकिन मुझे जब तक रहत महसूस होती, उन्होंने दुगनी ताकत से अपना लंड फिर मेरे अन्दर पुश कर दिया.
मेरी आँखों से आंसू और चूत से खून निकलने लगा. मैं चीख रही थी- और मामा धक्के पे धक्के दिए जा रहे थे.
वो पूरी ताकत से अपने लंड को बार-बार अन्दर बाहर कर रहे थे.
मुझे बहुत दर्द हो रहा था. लेकिन कोई
10 मिनट तक उन्होंने ऐसे ही जोरों से मेरी चुदाई की.
अब मुझे मज़ा आने लगा था. मई कहने लगी-यू आर डार्लिंग मामाजी! मजा आ रहा है. चोदे जाओ. निकलना  मतमामाजी धक्के पर धक्के लगा रहे थे.
वो कह रहे थे-मेरी जान, तुम्हारी चूत कमाल की है. मैंने रानी मुखेर्जी का जब केस था तब उसे और ऐसे ही प्रीती जिंटा को चोदा था. अभी परसों ही बिपाशा को भी चोदा था. लेकिन इतनी मजेदार तो कोई नहीं है.
मैं कहे जा रही थी- मामाजी और डालो मेरे अन्दर. पूरे घुस जाओ. फाड़ दो मेरी भूखी चूत को!
वो खूब चोद रहे थे और मैं भी अब नीचे से उछल-उछल कर चुदवा रही थी.
वो कह रहे थे- मजा आ गया मेरी जान. तुमने तो गजब कर दिया.
मेरी भी सिस्कारियां निकल रहीं थीं. मामाजी अपनी दोनों टांगों से मुझे जकड़-जकड़ कर चोद रहे थे.
थोड़ी ही देर के बाद उन्होंने अपना गरम-गरम मॉल मेरी चूत में भर दिया. अब दो धक्के और दिए तो मुझे कुछ अजीब सा लगा की ये मेरी चूत को क्या हो रहा है. मैं जैसे घोड़े पर स्वर हो गयी हूँ.
आह.. आः ... ये तो ज्वालामुखी फट रहा था. और तभी मेरा भी पानी निकल गया. मैं भी उनके साथ ही झड गयी. फिर हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए पड़े रहे बहुत देर तक. उसके बाद मामाजी ने फिर से एक बार मुझे चोदा. इस बार उन्होंने मुझे अपने ऊपर चढ़ा लिया. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. फिर भी मैंने पूरा लंड मेरी चूत के अन्दर घुसा लिया. इस बार मैं मामाजी के झड़ने से पहले 3 बार झड़ी. फिर मामाजी ने मुझे निचे पटक लिया और मेरी कोमल चूत को बुरी तरह से रौंदा. बाद में हमलोग नंगे ही सो गए. सुबह मामाजी ने मेरे पीछे से चूत में लंड को डाला.
मेरी फ्रेंड्स, खास तौर पर गिर्ल्स, मैं  आपको बता रही हूँ मामाजी के अनुभव से मुझे इतना मजा मिला की बता नहीं सकती. मुझे अपनी फ्रेंड की सलाह बिलकुल ठीक लगी. आज मेरी चूत और आत्मा दोनों तृप्त हो गयीं.  न किसी को मालूम होने का डर था न ही किसी से ब्लैकमेलिंग का खतरा.

कोई मिले तो कटे सर्दी की दुपहरिया

आज सर्दी अचानक बढ़ जाने से कहीं जाने का मन नहीं कर रहा है.
राजू को फोन किया तो वह अजमेर से बोल रहा था. परसों आएगा. मैं मरी जा रही थी की कोई मिले तो सर्दी की दुपहरिया कटे.
अचानक याद आया कि मेरी भाभी का एक भाई मनीष पढ़ाई करने की नीयत से जयपुर आकर रहने लगा है. ढूँढा तो उसका नंबर भी मिल गया.
मैंने कहा भइया, मेरी तबियत जरा नरम हो रही है. मेरे कमरे पे आ जाओगे क्या?
वह तुरत राजी हो गया. मैं नहीं जानती थी कि उसके मन में क्या था. लेकिन मेरे मन में तो बस एक ही बात रहती
है- लड़का मिले तो चुदाओ.
कोई डेढ़ घंटे लगे उसे मेरे कमरे पर पहुँचने में. घंटी बजी तो बाहर जाकर के दरवाजा मैंने ही खोला. मकान मालिक जानते हैं मेरे यहाँ लोग आते-जाते रहते हैं. सो उसकी कोई समस्या कभी रहती नहीं है.
मुझे ठीक-ठाक देख के मनीष जरूर परेशान सा लगा. उसने पूछा- दीदी, क्या हुआ आपको?
मैं बोली- अभी दो गोलियां खाई है तो आराम मिला है. रिस्क लेना नहीं चाहती इसलिए तुम्हें बुला लिया है.
झूठ को आगे बढ़ाते हुए मैंने दरवाजा बंद किया और मनीष को अपने पीछे आने का इशारा करके अपने कमरे की ओर बढ़ गयी.
मैंने कहा- मनीष मेरा सर चकरा रहा है. पहले दो कप चाय बना दो, फिर जरा मेरा सर दबा देना.
उसने बड़ी ख़ुशी से हाँ कर दी और चाय बनाने की तैयारी करने लगा.
मैंने झूठ-मूठ के कहा कि आज मेरा पीरियड का पांचवां दिन है. ब्लड आना तो बंद हो गया है, लेकिन मेरे कमर और पेट में काफी दर्द है.
पीरियड की बात सुन करके वह थोड़ा झेंप सा गया. कुछ बोला नहीं. दर्द की गोलियां तो मेरे पास रहती ही हैं. मैंने  कहा कि वह जरा डब्बे को खोल करके उनमें से कोई दर्द-निवारक गोली निकाल लाये.
मनीष ने पहले तो चाय बनाया फिर दवा के डब्बे को लाकर के मेरे सामने रखने लगा.
मैंने कहा- मुझसे कुछ नहीं देखा जा रहा. सर चकरा रहा है. तुम खुद ढूंढो.
उसने देखना शुरु किया तो उसे गर्भ-रोधी गोलिया भी मिलीं. मैं यही तो चाहती थी.
उसने जब उन गोलियों को देखा तो उसकी नजरों में वही सब कुछ चमकने लगा जो सब मैं चमकाना चाहती थी.
उसने पूछा- दीदी, इन गोलियों को कौन खाता है?
मैंने पूर्ण सादगी से कहा- मैं ही खाती हूँ जब जरूरत पड़ती है.
मनीष उतना भी भोला नहीं था. फिर उससे मेरा मजाक करने का रिश्ता भी बनता था.
उसने मुस्कराते हुए कहा- फिर आज जरूरत पड़नी ही चाहिए. मैं जो हूँ.
मन ही मन मैं इतरा उठी. मेरी भूमिका तो बन गयी थी. फिर भी मेरा नाटक जारी रहा.
मैंने कहा -तुम्हें मजाक की पड़ी है. यहाँ मैं मरी जा रही हूँ.
मनीष ने तुरंत 'सारी' कहा और मेरे नजदीक आकर मेरे सर पे हाथ फेरने लगा. बोला- पहले चाय पी लो दीदी. फिर मैं सर दबा दूंगा.
सर्दी तो थी ही, मैं कम्बल ओढ़ के पड़ी रही.
मनीष ने जब चाय पीने के लिए दुबारा कहा तो मैं धीरे से बैठी हो गयी और चाय की प्याली पकड़ ली.
चुस्कियां लेते हुए मैंने कहा कि वह जरा पानी भी गरम कर दे ताकि हॉट बैग से मैं पेट की सिकाई भी कर लूं.
बिलकुल ही आज्ञाकारी प्राणी की तरह वह मेरे आदेश का पालन करता जा रहा था.
चाय पीने के बाद मैं फिर लेट गयी और कम्बल अपने ऊपर डाल लिया.
मनीष थोड़ी ही देर में हॉट बैग को भर लाया. मैंने उसे हाथ में लेना चाह तो उसने मना कर दिया. बोला- आप रहने दो. मैं सेंक देता हूँ.
बैग ज्यादा ही गरम था. लेकिन उससे भी ज्यादा तो मेरी चूत गरम होकर पानी छोड़ रही थी.
मनीष ने कम्बल हटाना चाहा तो मैंने कहा की मुझे सर्दी लग रही है. कम्बल मत हटाओ. उसके भीतर से ही सिकाई कर लो.
मुझे पता था कि परदे में मनीष को हरकत करने में सुविधा होगी. मैं वही तो चाहती थी. नहीं तो इतनी दूर परेशान करने कि क्या जरूरत थी.
मनीष ने पूछा कि दर्द कहाँ हो रहा है. मैंने पेट के निचला हिस्सा बता दिया.
कम्बल के भीतर से पहली ही कोशिश में उसका हाथ मेरी चूत से टकराया. चाहे जानबूझ के या अनजाने में. मैंने मुस्कारे के मनीष को एक नशीली मुस्कान के साथ देखा फिर प्यार से झिड़कते हुए बोली- कोई बदमाशी नहीं करनी.
मनीष बोला- चिंता मत करो. मैं बस वही करूंगा जो करना है.
उसने बैग तो मेरे पेट पर रख दिया और चूत को मेरी सलवार के ऊपर से ही सहलाने लगा.
अब नाटक करना बेकार था. मैं मजे के मारे ऐठने लगी थी. बैग मैंने अलग फेंक दिया और मनीष को खींच के अपने सीने से लगा लिया. अब क्या था. मनीष भी मुझसे चिपट कर मेरे होंठों को चूसने लगा.
उसके हाथ मेरी समीज के भीतर घुस गए और मेरे बूब्स को दबाने-सहलाने लगे.
मैंने मनीष का शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए तो वह पीछे हट गया और खुद ही कपड़े उतरने लगा.
शर्ट दूर फेंकने के बाद उसने अपनी जींस भी उतार दी लेकिन चड्ढी उतारे बिना ही वापस मेरे ऊपर चढ़ गया.
उसने मेरी समीज ऊपर करनी शुरू कर दी तो मैंने उसे पीछे धकेल कर हटाया और खुद ही अपनी पोषक से आजाद होने लगी.
अभी बमुश्किल मेरी बूब्स दीखनी शुरु हुई ही थी कि उतावला मनीष उनसे लग गया. एक को दबाया और दूसरी को चूसना शुरु कर दिया.
मैंने हंस कर कहा- कपड़े तो उतार लेने दो भई.
लेकिन बिना बोले वह तो लगा रहा. इसके पहले कि मैं सलवार तक पहुँचती, मनीष ने ही उसका नाड़ा खोल दिया. मैंने न तो ब्रा पहना था न ही चड्ढी.
मनीष को सब बड़ा प्यारा लग रहा था. वह सरकते हुए मेरी चूत तक पहुँच गया और अपनी जीभ मेरी फांक में डाल दी.
उसने अपनी दोनो हथेलियों से मेरे दोनो जांघों को अलग फैलाया और फिर अपनी उँगलियों से चूत को चौड़ी करते हुए अपनी जीभ और भी भीतर ले जाते हुए मेरी चूत-घुंडियों को चाटने लगा.
इतना मजा हर कोई नहीं दे पाता है. मुझे पहले पता नहीं था कि यह लड़का इतना एक्सपर्ट निकलेगा.
काफी मजे लेने के बाद मैंने कहा- अब मुझे अपना लंड चूसने दो.
मनीष पीछे हटा तो मैंने देखा कि उसकी चड्ढी तम्बू बन रही थी. उसने खुद ही अपनी चड्ढी उतारी और आगे बढ़ के अपना लम्बा सा लंड मेरे मुंह में दे दिया.
लंड को चूसने का काम मैं भी बखूबी कर लेती हूँ. जब मैंने अपनी कलाकारी दिखानी शुरु करी तो मनीष ने मुझे बालों से पकड़ लिया और अपना लंड मेरे गले तक पहुंचा दिया.
मैंने अपनी एक हथेली से उसके अन्डकोशों के नीचे की जगह को सहलाना शुरु कर दिया.
बस विस्फोट हो गया.
मनीष ने अपना पूरा माल मेरे मुंह में ही निकाल दिया.
मैंने एक भी बूंद बाहर नहीं जाने दिया. मनीष का चेहरा बता रहा था की उसे कितना जोर का मजा आ रहा था.
मेरी चूत प्यासी रह गयी थी.
मनीष को इस बात का मलाल भी हुआ तो मैं बोली- कोई चिंता न करो. आज मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दे रही. आओ मेरे साथ कम्बल में समां जाओ. गरम होकरके फिर करेंगें. अब भी और रात में भी. मेरी तबियत अब नरम नहीं गरम है.
मनीष कुछ नहीं बोला. बस मेरे होठों को चूसता हुआ मेरे ऊपर चढ़ गया. मैंने एक हाथ से ही कम्बल खींच के अपने दोनो पर डाल लिया.

दोस्तों मेरा नाम sabbo है .मैं अपने मम्मी-पापा और एक बड़े भाई साथ सौरभ नगर कोलीनी में रहती हूँ. हमारा फ्लैट तीसरी मंजिल पर एकदम कोने पर है. दो साल पहले ही हमारी कालोनी बनी थी और यह अभी भी मुख्य शहर से बहुत दूर है। 

दो साल पाहले यहाँ जंगल और खेत थे. आज तक कालोनी को जाने के लिए पक्का रोड भी नहीं बन पाया है. रात के दस बजे के बाद चारों तरफ कोई आदमी दिखाई नहीं देता. कालोनी के बहुत से फ्लैट अभी भी खाली पड़े हैं. 
मेरे पापा रेलवे में गार्ड हैं और तीन दिन के बाद वापस घर आते हैं. मैंने कई बार छुप के देखा है कि घर आते ही कैसे वे मम्मी पे टूट के चोदते हैं. 
मेरा बड़ा भाई नरेश एम काम कर रहा है. उसकी शादी तय हो चुकी है लेकिन वह मेरी काया का दीवाना है. जब भी मैं नहाने जाती हूँ वह छुप के देखता है.
मैं 20 साल की हो चुकी हूँ और अकेले पिछले महीने ही तीन बार चुदा चुकी हूँ. लेकिन मम्मी को इसकी खबर नहीं है. मम्मी अगले साल मेरी भी शादी करवाना चाहती हैं. वे शादी के लिए जेवर और रुपया अपने लोकर में जमा करती रहती हैं. 
हमारी कालोनी में अक्सर लाईट भी चली जाती है. ऐसे में कालोनी के लोग घरों में भीतर ही बैठे रहते हैं। कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है.
यह इसी साल दिसंबर की बात है. में अपनी मम्मी के साथ उनके कमरे में थी. मेरा भाई पढ़ कर अपने कमरे में सो गया था. तभी अचानक लाईट चली गयी.
रात के करीब ग्यारह बज चुके थे। मम्मी को जीने पर किसी के पैरों की आहट और बात करने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने मुझे खिड़की से बाहर देखने को कहा. मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया. तभी किसी ने घर के दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. 
मुझे लगा शायद पापा जल्दी घर आ गये हैं. मैं दरवाजा खोल ही रही थी कि तीन लोग दन्न से भीतर हाल में घुस आये. इसके पहले कि मम्मी मामला समझती, एक आदमी ने मम्मी के गाल पर जोर का चांटा मार दिया. 
मैं घबरा कर जीने के नीचे छुप गयी. हाल में होनेवाली घटना चुपचाप देखने लगी. 
तभी लाईट जैसे अचानक गयी थी वैसे ही अचानक आ भी गयी. मैंने देखा तीन लुटेरे हाथ में चाकू लेकर मम्मी को वश में किये हुए हैं. तीनों लुटेरों की आयु लगभग 25 से 30 साल के बीच की थी. एक ने मम्मी के गले पर चाकू रखा तो मम्मी ने पूछा तुम लोग कौन हो और क्या चाहते हो. 
वह बोला मादरचोद देखती नहीं हम कौन हैं. बड़ी भोली बनती है. हमें पता है तूने काफी माल जमा कर रखा है. ला साली लाकर की चाबी दे और सारा माल हमारे हवाले कर दे. वरना तुझे यहीं काट कर रख देंगे.
डर के मारे मम्मी ने सारे जेवर और रुपये उनको दे दिये. मम्मी रोने लगी तो एक ने दोबार मम्मी को ऐसा जोर का चांटा मारा की वह पलंग पर गिर गई. वे हाथ जोड़ कर बोलीं कि अब मेरे पास कुछ नहीं है. मुझे छोड़ दो. 
चाकूवाले ने दूसरे लुटेरे से कहा बल्लू मकान की ठीक से तलाशी ले. फिर उसने नोचा-चोथी करते हुए एक-एक करके मम्मी के सारे कपड़े उतार दिए. 
शर्म के मारे मम्मी ने अपनी चूत पर हाथ रखना चाहा तो चाकू वाले ने हाथ हटा दिया.
वह बोला- साली कहीं चूत में कुछ छुपा तो नहीं लिया है. उसने मम्मी की चूत में उंगली डाल कर देखा. फिर उनको पलंग पर गिरा उनपे चढ़ कर उनको चूमने लगा. 
बाकी दोनों लुटेरे घर में सब जगह तलाशी लेने लगे तो उन्हें मैं सीढियों के नीचे छुपी हुई मिला गयी. 
उनमे एक जोर से चिल्लाया-सत्तो माल मिल गया. बड़ा कीमती माल है।
मुझे अचानक समझ आ गया कि यह लुटेरे कौन थे. जिसे यह लोग सत्तो कह रहे थे मैं उसे जानती थी. उसका असली नाम सतीश था. वह कभी मेरे भाई के साथ पढ़ता था. सतीश को पहचानने के बाद मैं बाक़ी दोनों को भी जान गयी. जिसे यह लोग बल्लू कह रहे थे उसका नाम बलदेव था और तीसरा अजीत था। 
तीनों  अच्छे घर के लड़के थे लेकिन बुरी संगत में पड़ के ऐसे काम करने लगे थे। उन दोनों ने मुझे बालों से पकड़ कर सतीश के पास खींच लिया. 
सतीश मम्मी से बोला- हरामजादी झूठ  बोलती है कि अब कुछ नहीं है. यह माल क्या तेरी चूत से आ गया है?
आवाज सुन कर मेरा भाई जाग गया. तीनों ने उसे भी हाल में घसीट लिया और उसे पीटने लगे. मम्मी बोली तुम लोगों को जो लेना था वह ले चुके अब मेरे लड़के को क्यों मार रहे हो?
जब मम्मी गुस्से में गाली देने लगी तो अजीत बोला- रंडी तुझे अपने पर बड़ा प्यार है. अब जब तक तू अपने इसी लड़के से नहीं चुदवायेगी हम उसे पीटना नहीं छोड़ेंगे. उसे तेरे सामने ही यहीं काट कर fenk  देंगे. 
सतीश ने चाकू दिखा कर नरेश से कहा चल अपनी माँ की चुदाई कर. तुझे आज सचमुच का मादरचोद बनाए देते हैं।
उन्होंने नरेश के सारे कपड़े उतरवा दिए और मम्मी के ऊपर चढ़ा दिया. शर्म के मारे नरेश का लंड खड़ा नहीं हो रहा था.
अजीत बोला-साले लंड जल्दी तय्यार कर, नहीं लंड काट कर तेरी माँ की चूत में घुसा देंगे. फिर लंड के बिना हिजड़ों में डोलता रहेगा. 
मम्मी घबरा गयीं. खड़ा करने के लिए खुद ही नरेश का लंड चूसने लगी. 
ऐसी हाल में अब मुझे नरेश का लंड बड़ा प्यारा लगने लगा था. लुटेरों का परिचय पाकर मेरा भय दूर हो गया था. लेकिन नरेश झिझक रहा था और अपना लंड मम्मी की चूत में नहीं घुसा रहा था. 
यह देख कर मम्मी ने कहा बेटा यह लोग जैसा कहें वैसा करो. मुझे चोदने में में कैसी शर्म. आजा बेटा जल्दी से लंड अन्दर घुसा दे और अपनी माँ की इज्जत बचाले. अगर तू नहीं चोदेगा तो ये मुझे चोदेंगे  और मैं इनसे चुदवाना नहीं चाहती.
इतना सुनते ही नरेश का लंड फनफनाने लगा. उसने अपना लंड अपने हाथ में लेकर मम्मी की चूत के मुहाने पर रखा और एक ही झटके में पूरा लंड मम्मी की चूत में घुसा दिया. मम्मी का समर्थन पाकर वह जोरों से भीतर की ओर धक्के भी मारने लगा.
मम्मी जोर जोर से ओह-ओह, उई-उई करने लगी. 
सतीश बोला- यार यह माँ बेटे की चुदायी देख कर अपना लंड भी खड़ा हो गया है. 
मम्मी को मेरे सामने चुदवाने में कोई शर्म नही आ रही थी. वह तो नरेश के लंड का स्वाद ले रही थी. देख कर साफ पता चल रहा था कि उसे जवान बेटे से चुदाने में बड़ा मजा आ रहा था.
मम्मी को धन के लुटने का कोई दुःख दिखाई नहीं दे रहा था. वह नरेश के हरेक धक्के पर अपनी कमर उछाल रही थी. 
तभी अजित ने आगे बढ़ के अपना लंड मम्मी के मुंह में दे दिया तो वे उसे भी बड़े प्यार से चूसने लगीं. 
जब नरेश थोड़ा ढीला पड़ा तो मम्मी ने अजित का लंड चूसना छोड़ दिया और नरेश से कहने लगी-तुम तो मेरे बेटे हो. लेकिन बहुत दिनों से मेरा मन तुम पर आ रहा था. मेरे जवान भाइयों ने मुझे खूब चोदा है. लेकिन आज तक मुझे ऐसे में किसी ने नहीं चोदा. तुम दोगुनू ताकत से धक्के मारो. तुमने जितना मेरा दूध पीया है उतना ही अपने लंड का रस मेरी चूत में डाल दो।
यह देख-सुन कर खुद मेरी चूत गीली हो रही थी. काफी देर तक चुदाई करने के बाद नरेश ने अपना वीर्य मम्मी की चूत में डाल दिया.
वीर्य चूत से बाहर आ रहा था. यह देख कर सतीश ने मेरे बाल पकड़ कर मेरा मुंह मम्मी की चूत पर रख दिया और बोला-साली देखती क्या है, जल्दी से चूत का सारा रस चाट ले. क्या तझे अपने भाई के लंड का और माँ की चूत का रस पसंद नहीं है. पी ले पी ले. इससे तुझे हमारे लंड झेलने की ताकत मिल जाएगी.  हमारे लंड लेने में दर्द नहीं होगा। अब तेरी बारी है. बता, पहले किसका लंड लेगी? 
तीनों ने तुरंत ही अपने लंड मेरे सामने निकाल कर दिखाए. 
सभी लंड काफी बड़े थे. मेरे समझ में नही रहा था कि मैं कौन सा लंड लूँ. 
मैं माँ की तरफ देखने लगी.
माँ ने भी तीनों लंड देखे और लुटेरों से बोली- तुम लोग खुद तय करो. लेकिन समझ लो मेरी लड़की ने अभी तक लंड का स्वाद नहीं लिया है. 
अजीत बोला- यह तो और अच्छी बात है. आज आपके सामने ही आपकी लड़की की चूत का उदघाटन होगा. आपकी लड़की किस्मतवाली है. एक साथ तीन लोगों से सुहागरात मना रही है. भविष्य में उसे लंड लेने में कोई तकलीफ नहीं होगी. हम पहले सबसे बड़े लंड से चूत की सील तोड़ेंगे. तुम उसे हिम्मत दिलाना की वह लंड बर्दाश्त कर ले।
मम्मी ने मेरी चूत में अपनी जीभ डाल कर उसे चिकनी कर दी और बोली-बेटा हरेक लड़की को एक न एक दिन लंड लेना ही पड़ता है. मुझे भी पहली बार कुछ दर्द हुआ था, लेकिन आज मैं हरेक तरह के लंड आराम से ले सकती हूँ. 
औरत की जिन्दगी तो चुदवाने के लिए होती है. चाहे उसका पति चोदे या कोई और. इसलिए तू आराम से चुदवाले. मैं तेरे पास रहूँगी और तेरी चूत फैलाती रहूँगी ताकि लंड के लिए जगह बनती रहे।
मम्मी के समझाने पर मैं तैयार हो गयी और टांगें फैला कर पलंग पर लेट गयी. अजित का लंड सबसे बड़ा करीब ८ इंच का था. 
उसने अपने लंड का सुपारा चूत के छेद पर रखा और धीमे-धीमे घुसाने लगा. 
जब आधा लंड अन्दर चला गया तो मम्मी बोली- पूनम शाबाश. हिम्मत रखो. 
अजीत ने लंड थोड़ा सा बाहर निकला और एक जोरदार धक्का मारा. लंड चूत को फाड़ते हुए पूरा अन्दर चला गया. 
मैं जोर से चिल्लाई -मम्मी बचाओ मेरी चूत फट रही है. यह लंड बहुत बड़ा है.
मम्मी बोली धीरज रखो आगे से अब ये छोटे लंड से तुम्हारी चुदायी करेंगे. 
मेरी चूत से अब पानी आने लगा था और अजीत लगातार धक्के मार रहा था. 
मम्मी भी अपनी चूत में उंगली कर रही थी और मजे ले रही थी. उधर नरेश का लंड भी दोबारा खड़ा हो गया था तो मम्मी ने उसे फिर अपने ऊपर चढ़ा लिया. 
कोई दस मिनट के बाद मुझे भी मजा आने लगा. चूत से फचाफच की आवाज आने लगी।
मम्मी बोली पूनम अब तुम चुदवाने के लिए काबिल हो गयी और मेरी तरह रोज चुदवाया करोगी।
बाद में दोनों बाक़ी लड़कों ने भी मेरी जम कर चुदाई की और मम्मी की दोबारा गांड मारी. लगातार कई बार चुदने के कारण मेरी चूत सूज गयी थी और दुखने भी लगी थी. लेकिन मुझे इतना मजा आया था कि मैं और भी चुदाने को तैयार थी. एक बार भाई से भी.
एक ही झटके में हम सभी की सेक्स के बारे में झिझक और शर्म दूर हो गयी. मैं सोचने लगी की अब मैं जब चाहे खुलेआम जिससे चाहे चुदवा लुंगी.
सतीश मेरे भाई से बोला तुम भी पूमम की सील टूटी चूत का मजा ले लो. ऐसा मौक़ा तुम्हे फिर जाने कब  मिलेगा. 
मम्मी बेशर्मी से बोली- बेटा फिर बहिन के आगे अपनी माँ को नहीं भूल जाना. मुझे भी अपना लंड देते रहना. तुम्हारा जवान लंड है. अब तुम्हारे पापा के लंड में मेरी चूत की प्यास बुझाने की ताकत नहीं रही. 
जाते-जाते तीनो लुटेरों ने सारे जेवर और रुपये वापस कर दिये और बोले- आंटी आपने और पूनम ने बड़ा मजा दिया. जब भी हमारे लंड की जरूरत हो याद कर लेना.
अजीत बोला- पूनम की चूत बड़ी मस्त है. काश मेरी शादी पूमम से हो जाती।
मम्मी ने पूछा- बोलो पूनम तुम्हें अजीत का का लंड कैसा लगा. तुम अजीत से शादी करोगी? 
मैंने अजित के लंड का ध्यान किया. दमदार था. मैं तैयार हो गयी. 
आज मैं अजीत की पत्नी हूँ और अजीत से रोज चुदती हूँ. कभी-कभी भाई नरेश भी मुझे चोद लेता है.
बाक़ी और लोग भी कभी मुझे और कभी मेरी मम्मी की चुदायी करने आते-जाते रहते हैं। अजित को कोई आपत्ति नहीं होती. उसे बदले में खर्च करने को काफी पैसे मिल जाते हैं. 
वह भी जब मन होता है मेरी मम्मी को भी चोद लेता है. चारो तरफ सर्वानन्द है. कोई कभी भी जो राजी हो जाये उसे चोद ले. किसी के सामने भी. कोई परवाह नहीं करता.
कभी आप भी आओ न! हम पैसे नहीं मांगते. जो दे जाओगे, चलेगा.

Friday 17 February 2012

मजे से पापा से ही चुदाया कर

ऋचा मेरी बेहतरीन सहेलियों में से है. हम दोनों न सिर्फ क्लासमेट हैं बल्कि हमारी पसंद, शकल-सूरत और  ऊँचाई भी एक सी है. हम दोनों के दूसरे की सेक्स-मित्र भी हैं. यह भी बता दें की हमारी ब्रा का साइज भी एक ही है-- 32 में बड़ावाला.
चूत के मामले में मैं थोड़ी भारी पड़ती हूँ. मेरी चूत का आकार ऋचा के मुकाबले बड़ा है. 
ऋचा के पापा, हरीशजी,  हमारे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर भी हैं. वे शुरू से ही मुझ पर कामुक नीयत रखते थे. वे कई बार इशारे में मुझे सेक्स का न्योता भी दे चुके थे. 
एक दिन उन्होंने एकांत पा करके मुझे अचानक भींच लिया. पहले एक हाथ से मेरे बूब्स को मसला फिर मेरे होठों को भी चूसने लगे.
हालाँकि मैं उन्हें ताउजी कहती हूँ, फिर भी अगर वे मुझसे सेक्स करना चाहते थे तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी. मैंने भी उन्हें बराबर की टक्कर दी. मैंने उनके पैंट की जिप खोल करके पहले उनका लंड हाथ में लिया और बाद में मुंह में लेकर तब तक खेलती रही जब तक वे झड़ नहीं गए. मेरे मुंह में ही.
तबसे वे मेरे दीवानों में शामिल हैं. आखिर मैं जवान और सेक्स के लायक हूँ. कोई मुझे न चोदना चाहे तो मेरे लिए शर्म की बात होती है.
वैसे भी,  मैं नए, कमसिन लौंडों बजाय उमरदराज लोगों की फ़िराक में अधिक रहती हूँ. सेक्स के लिए मुझे या तो लड़कियां या फिर बुजुर्ग हीं पसंद हैं. 
एक दिन मैं उनके साथ अकेले में बैठ कर उनके लंड को सहला रही थी. वे मजे के मारे छटपटा रहे थे. तभी मुझे ख्याल आया कि उनकी बिटिया, ऋचा, ने आज तक किसी मर्द का मजा नहीं लिया है. हालाँकि उसकी चूत कुंआरी नहीं है.
उसने मेरे सेक्स खिलौनों का स्वाद खूब लिया है. कई प्रकार के कृत्रिम लंड उसके चूत में जाने कितनी बार समा चुके हैं. मेरी उँगलियाँ और जीभ तो उसकी चूत में डली ही रहती हैं. इनसे उसका काम चलता रहता है.
फिर भी, मर्द तो मर्द ही होता है. उसको अभी तक असली लंड नहीं मिला था.
मैंने अचानक ही हरीशजी से पूछ लिया- ताउजी, मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं लगती हूँ क्या?
बिलकुल, बेटा! ताउजी ने शरारती अंदाज में कहा- तुम मेरी बेटी हो और मैं बेटीचोद.
मैंने ताऊ के लंड पर कार्रवाई तेज कर दी. उन्हें जब और भी मजा आने लगा तो मैंने फिर पहले की ही तरह अचानक ही प्रश्न किया- आपने कभी ऋचा को चोदा है?
वे सकपका गए. फिर धीरे से बोले- नहीं तो!
फिर बेटीचोद कैसे? मैंने बात आगे बढ़ाई .
ताउजी समझ गए कि मैं क्या कहना चाहती हूँ.
उन्होंने बात  को सम्हालते हुए सफाई दी- असल में यह विचार कभी मेरे मन में आया ही नहीं. हमारे यहाँ ऐसा माहौल भी नहीं है. फिर ऋचा ने भी तो कभी कोई इशारा तक नहीं दिया है.
मैं बोली-तो क्या वह हाथ में बैनर लेके आये कि पापा मुझे चोद दो?
अब ताउजी तय नहीं कर पा रहे थे की क्या कहें. बस मेरी तरफ देखते रहे.
मैं धीरे से उनके लंड पर चढ़ने लगी. जब उनका लंड मेरी चूत में पूरी तरह से घुस गया तो वे झटके देने की कोशिश करने लगे. मैं मजे लेते हुए बात को आगे बढ़ाने लगी.
मैंने कहा कि ऋचा को पता है कि ताईजी के साथ आपका सेक्स जीवन करीब-करीब खत्म सा है. वे अब सेक्स में कोई रुचि नहीं लेतीं. ऋचा को इस बात का अफ़सोस भी है क्योंकि वह जानती है कि आप आज भी सेक्स में रुचि रखते हो. आपको सेक्स की जरूरत है.
उसे यह भी पता है कि आप मेरे से सेक्स करते हो. मुझे चोदते हो.
ताउजी झुंझला के बोले- तो क्या इसी वजह से मैं अपनी बिटिया को चोद दूं?
मैंने अगला प्रश्न किया- तो फिर मुझे क्यों चोदते हो? मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं हूँ क्या?
ताउजी निरुत्तर हो गए. मैं जानती थी वे मेरे बारे में कोई कठोर वचन कढ़ा के मुझे खोने की जोखिम नहीं ले सकते थे.
थोड़ी देर तक मैं उनके लंड पर उछलती रही. जब मुझे लगा कि वे झड़ जायेंगे तो मैं हट गयी और उनका लंड अपने मुंह में ले लिया. उन्हें ज्यादा मजा आने लगा था.
वे हमेशा ही मूड बनाने के लिए ऐसा ही करते थे. मुंह में दिए बगैर वे पूरे मन से चोद नहीं पाते थे.
मैंने अपनी एक ऊँगली उनके गांड में भी डाल दी. यह उनकी दूसरी पसंदीदा स्टाइल थी.
गांड में ऊँगली डालते ही किसी के लंड को खड़ा होते मैंने पहले न तो देखा, न सुना था. लेकिन ताउजी तो ऐसे ही गरम होते थे.
उन्होंने मेरे बालों को पकड़ लिया और अपने लंड को मेरे मुंह में भीतर तक धकेलने लगे.
जब पूरी तरह गरम हो लिए तो वे अपनी शर्ट उतारने लगे. मुझसे भी कहा कि अब मैं भी अपने कपड़े उतार दूं. मैं उनके लंड की चुसाई छोड़ के अपने कपड़े उतारने लगी. हरीशजी तो पहले ही नंगे हो चुके थे. जब मैं बिलकुल ही नंगी होकर उनके खड़े लंड पर दुबारा चढ़ने लगी तो मैंने अचानक पूछ लिया- ऋचा को बुलवाऊं क्या?
ताउजी शेखी मारने के अंदाज में बोले- अब किसी को भी बुलवा लो. उसीको चोद दूंगा. मैं ऋचा तो क्या उसकी सारी सहेलियों को भी चोद दूं. पर वह चुद्वाए तो सही.
थोड़ी ही देर में मैंने उछल-उछल कर ताउजी को झटके देने शुरु कर दिए. जब वे झड़ने ही वाले थे तभी मैंने उनको अपने ऊपर कर लिया. एक चीख सी मारते हुए उन्होंने हमेशा की तरह अपना ढेर सारा मॉल मेरी चूत में निकल के मुझे तर कर दिया.
जब वे पस्त होकर पीछे हटे तो मैं भी उनसे अलग होकर ऋचा को अपनी मोबाइल से काल मिलाने लगी.
वे उलझन में पड़ गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ और क्या हो रहा है.
उन्होंने पूछा- अचानक किसे फोन करनी की जरूरत पड़ गयी?
मैंने जबाब दिया- ऋचा को. मैं उसे बुला रही हूँ.
ताउजी उलझन भरी नजरों से मुझे देखते रहे. ऋचा को काल करने के बाद मैं वापस ताऊ के लंड को सहलाते हुए उस पर चढ़ने लगी. मैंने गौर किया कि कुछ तो मुझे अभी-अभी चोद के फ्री होने के कारण और कुछ ऋचा का नाम सुन कर ही उनका लंड ढीला पड़ गया था.
उन्होंने थोड़ा नर्वस अंदाज में पूछा- ऋचा आ रही है क्या?
मैं बोली- वह यहीं है और हमें चुदाई करते हुए देख के गयी है.
ताऊ का मुंह खुला का खुला रह गया.
तभी ऋचा कमरे में आ गयी.
मैं वापस ताऊ के लंड से लग गयी. उसे मुंह में लेकर चूसने लगी. धीरे-धीरे वे मूड में आने लगे.
मैंने ऋचा को कपड़े उतारने का संकेत किया और ताउजी के गांड में एक बार फिर ऊँगली डाली.
ऋचा की नंगी जवानी और उठी हुयी जबरदस्त चूचियों को देख के वे सन्न रह गए.
मेरे अलग हट जाने से उनका लम्बा लेकिन लटका हुआ लंड अब हम दोनों के साफ सामने था. ऋचा बड़ी हसरत से उसे देख रही थी.
मैंने आगे बढ़ के उसे सहलाना शुरू कर दिया. वे अब एक बार फिर तुरत ही टन्न हो गए. तब मैंने उनका लंड तो हाथ में पकड़े रखा लेकिन थोड़ा पीछे हटते हुए ऋचा को चार्ज दे दिया.
'आ मेरी बुलबुल. अपने पापा पे चढ़ जा.'
ऋचा ने बिना झिझक मेरे हाथ से अपने बाप का लंड ले लिया और उसे चूसने की तैयारी करने लगी. वह अपने घुटनों के बल बैठ गयी और बड़ी सफाई से हरीशजी के लंड को चूसने लगी. मैं उसके पीछे बैठ कर उसके मस्त कूल्हों को सहलाती रही.
थोड़ी देर में मैंने उसकी चूत की खबर लेने के लिए अपनी हथेली को वहां फिराया. सब कुछ गीला-गीला सा हो रहा था.
अब मैं खड़ी हो गयी और पीछे से ही ऋचा को उसके जांघों से पकड़ के उठाते हुए उसके बाप के लंड पर धर दिया.
मेरा निशाना सही नहीं था.
हरीशजी का लंड चूत में नहीं गया. तब ऋचा ने खुद अपने हाथ से अपने बाप का लंड सेट किया और एक जोर का धक्का दिया.
एक ही बार में गच्च से हरीशजी का लंड ऋचा चूत में समा गया.
मजे के मारे ऋचा चीख पड़ी- अह! मैं मरी रे बबिता. तू किधर है?
मैं तो वहीँ थी.
हरीशजी ने अब सारी झिझक छोड़ के ऋचा को पटक लिया और उसके ऊपर चढ़ के उसे पूरी ताकत से चोदना शुरु कर दिया. ऐसा लग रहा था मानो वे कोई खुन्नस सी निकाल रहे हों.
अभी थोड़ी ही देर पहले वे झड़ के अलग हुए थे. इसलिए काफी देर तक वे मजे लेकर ऋचा को चोदते रहे. उन्होंने ऋचा को बुरी तरह से पस्त लेकिन मजे में मस्त करके ही छोड़ा.
फिर हम तीनों ने एक साथ चाय पी और कोई डेढ़ घंटे बाद मैंने हरीशजी से दुबारा चुदवाया. अबकी बार ऋचा हमारे पास में बैठी रही.
जब मैं अपने हास्टल को चलने लगी तो मैंने ऋचा को उसके चूचियों से पकड़ कर दबाया और होठों पर जोर से चूमते हुए कहा- मेरी बुलबुल, अब तो हर रात तेरी हसीन रात है. मजे से पापा से चुदाया कर.
चूत नाईट एंड गुड बाय!

Thursday 16 February 2012

train me chudai


ट्रेन का स्टाफ और मैं अकेली

प्रेषिका : प्रतिभा शर्मा
हेल्लो दोस्तों मेरी पिछली कहानी मैं आपने मेरे पति के पाँच दोस्तों के साथ मेरी चुदाई का किस्सा देखा. आप सभी पाठकों के ढेर सारे मेल मुझे मिले. मुझे खुशी है की आपको मेरी स्टोरी इतनी पसंद आई. आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद. आज में आपको एक और जोरदार चुदाई का किस्सा सुनाने जा रही हूँ पहले की तरह ये भी मेरी निजी लाइफ का एक किस्सा है.
ये बात लगभग साल पहले की है. हमारे रिश्तेदारी में किसी की डेथ हो गई थी. मेरे पति अपने काम धंधों में व्यस्त थे इसलिए मुझे ही वहां जाना पड़ा. ट्रेन का सफर था और मुझे अकेले ही जाना था इसलिए मेरे पति ने प्रथम श्रेणी एसी में मेरे लिए रिज़र्वेशन करवा दिया था.
रात को दस बजे की ट्रेन थी. मुझे मेरे पति स्टेशन तक छोड़ने के लिए आए और मुझे मेरे कूपे में बिठा कर टिकेट चेकर से मिलने चले गए. मेरा कूपा केवल दो सीटों वाला था. अभी तक दूसरी सीट पर कोई भी पेसेंजेर नहीं आया था. मैंने अपने सामान सेट किया और अपने पति की इंतज़ार करने लगी.
थोडी ही देर में मेरे पति वापस गए. उनके साथ ब्लैक कोट में एक आदमी भी आया था. वो टिकेट चेकर था. उसके उम्र करीब छब्बीस साल की थी, रंग गोरा और करीब पौने छह फीट लंबा हेंडसम नवयुवक लग रहा था. मेरे पति ने उससे मेरा परिचय करवाया. वो आदमी केवल देखने में ही हेंडसम नहीं था बल्कि बातचीत करने में भी शरीफ लग रहा था.
उसने मुझसे कहा " चिंता मत कीजिये मैडम मैं इसी कोच में हूँ कोई भी परेशानी हो तो मुझे बता दीजियेगा मैं हाज़िर हो जाऊंगा. आपके साथ वाली बर्थ खाली है अगर कोई पेसेंजर आया भी तो कोई महिला ही आएगी इसलिए आप निश्चिंत हो कर सो सकती हैं."
उसकी बातों से मुझे और मेरे साथ साथ मेरे पति को भी तसल्ली हो गई. ट्रेन चलने वाली थे इसलिए मेरे पति ट्रेन से नीचे उतर गए. उसी समय ट्रेन चल दी. मैंने अपने पति को खिड़की में से बाय किया और फिर अपने सीट पर आराम से बैठ गई.
दोस्तों मुझे आज अपने पति से दूर जाने में बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. इसका कारण ये था कि मेरी माहवारी ख़तम हुए अभी एक ही दिन बीता था और जैसा कि आप सब लोग जानते हैं ऐसे दिनों में चूत की प्यास कितनी बढ़ जाती है. मैं अपने पति से जी भर कर चुदवाना चाहती थी लेकिन अचानक मुझे बाहर जाना पड़ रहा था. इसी कारण से मैं मन ही मन दुखी थी.
तभी कूपे में वो हेंडसम टीटी गया. उसने कहा "मैडम आप गेट बंद कर लीजिये मैं कुछ देर में आता हूँ तब आपका टिकेट चेक कर लूँगा."
उसके जाने के बाद मैंने सोचा की चलो कपड़े बदल लेती हूँ. क्योंकि रात भर का सफर था और मुझे साड़ी में नींद नहीं आती. ये सोच कर मैंने गाउन निकालने के लिए अपना सूटकेस खोला तो सर पकड़ लिया. क्योंकि मैं जल्दबाजी में गाउन के ऊपर वाला नेट का पीस तो ले आई थी लेकिन अन्दर पहनने वाला हिस्सा घर पर ही रह गया था. जो हिस्सा मैं लाई थी वो पूरा जालीदार था जिसमें से सब कुछ दीखता था.
करीब दो मिनट बैठने के बाद मेरी अन्तर्वासना ने मुझे एक नया निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया. मैंने सोचा कि क्यों आज इस हेंडसम नौजवान से चुदाई का मज़ा लिया जाए. ये बात दिमाग में आते ही मैंने वो जालीदार कवर निकाल लिया और ज़ल्दी से अपनी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट निकाल दिए.
अब मेरे बदन पर रेड कलर की पेंटी और ब्रा थी. उसके ऊपर मैंने सफ़ेद रंग का जालीदार गाउन पहन लिया. वैसे उसको पहनने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि उसमे से सब कुछ साफ़ नज़र रहा था और उससे ज्यादा मज़ेदार बात ये थी कि अन्दर पहनी हुई ब्रा और पेंटी भी जालीदार थी. इसलिए बाहर से ही मेरे चूचुक तक नज़र रहे थे. ख़ुद को आईने में देखकर मैं ख़ुद ही गरम हो गई.
सारी तैयारी करने के बाद मैं अपनी सीट पर लेट गई और मैगज़ीन पढ़ते हुए टीटी का इंतजार करने लगी. मुझे इंतज़ार करते करते पाँच मिनट बीत गए तो मैंने सोचा कि क्यूँ पहले खाना खाकर फ्री हो लूँ ये सोच कर मैंने अपना खाना निकाल लिया जो मैं घर से साथ लाई थी.
खाना शुरू करते हुए मैंने सोचा कि खाने के बीच मैं टीटी टिकेट चेक करने गया तो बीच में उठ कर टिकेट निकालना पड़ेगा ये सोच कर मैंने अपने पर्स में रखा टिकेट निकाल लिया.
टिकेट हाथ में आते ही मेरी आँखों के सामने उस टीटी का जवान बदन घूम गया और मेरे अन्दर की सेक्सी औरत ने अपना काम करना शुरू कर दिया. मैंने पहले ही जालीदार कपड़े पहने थे जिसमे से मेरा पूरा बदन दिखाई पड़ रहा था और फिर मैंने अपना टिकेट भी अपने बड़े बड़े बूब्स के अन्दर ब्रा के बीच मैं डाल लिया. अब वोह टिकेट दूर से ही मेरे लेफ्ट ब्रेस्ट के निप्पल के पास दिखाई दे रहा था.
पूरी तैयारी के बाद मैं खाना खाने लगी. तभी मेरे कूपे का गेट खुला और टीटी अन्दर गया. अन्दर आते ही मुझे पारदर्शी कपडों में देखकर बेचारे को पसीना गया. वह बिल्कुल सकपका गया और इधर उधर देखने लगा. मैंने उसका होंसला बढ़ाने के लिए उसकी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा और कहा "आईये टीटी साहब बैठिये, खाना लेंगे आप ?" मेरी बात सुनते ही वह बोला ".. नहीं मैडम आप लीजिये मैं तो बस आपका टिकेट टिक करने आया था. कोई बात नहीं मैं कुछ देर बाद जाऊंगा आप आराम से खा लीजिये." मैंने उसे सामने वाली सीट पर बैठने का इशारा करते हुए कहा "नहीं नहीं!! आप बैठो ना, मैं अभी आप को टिकेट दिखाती हूँ."
यह कह कर मैंने अपना खाने का डिब्बा नीचे रख दिया और टिकेट ढूँढने का नाटक करने लगी. ये सब करते हुए मैं बार बार नीचे झुक रही थी ताकि वो मेरी छातियाँ जी भर के देख ले. दोस्तों अब ये बताने की ज़रूरत तो शायद नहीं है की मेरे बड़े बड़े बूब्स किसी को भी अपना दीवाना बना सकते हैं. मेरे फिगर से तो आप लोग परिचित हैं ही.
ये सारी हरकतें करते हुए मैं ये इंतज़ार कर रही थी की वो ख़ुद मेरे लेफ्ट बोब्बे मैं रखे हुए टिकेट को देख ले और हुआ भी ऐसा ही उसने मेरे बूब्स की और इशारा करते हुए कहा " मैडम लगता है आपने टिकेट अपने ब्लाउज में रख लिया है."
मैंने अनजान बनते हुए अपने गले की तरफ़ देखा और हँसते हुए कहा " कहाँ यार...मैंने ब्लाउज पहना ही कहाँ है ये तो ब्रा में रखा हुआ है." बोलते बोलते मैंने अपने खाना लगे हुए हाथों से उसको निकालने की नाकाम कोशिश की और इधर उधर से ऊँगली डाल कर टिकेट पकड़ने की कोशिश करते हुए उसे अपने बूब्स के दर्शन करवाती रही.
जब मेरी ऊँगली से टकरा कर टिकेट और अन्दर घुस गया तो मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा "सॉरी..यार अब तो आप को ही मेहनत करनी होगी." मेरी बात सुनते ही वो उठकर मेरे पास गया और मेरे गाउन में हाथ डालता हुआ बोला "क्यों नहीं मैडम मैं ख़ुद निकाल लूँगा!!" ये बात कहते हुए वो बड़ी अदा से मुस्कुरा उठा था. उसने डरते डरते मेरे गाउन के अन्दर हाथ डाला और टिकेट पकड़ कर बाहर खीचने की कोशिश करने लगा. लेकिन टिकेट भी मेरा पूरा साथ दे रहा था. वो टिकेट उसकी ऊँगली से टकरा कर बिल्कुल मेरे निप्पल के ऊपर गया जिसे अब ब्रा में हाथ डाल कर ही निकाला जा सकता था.
वो बेचारा मेरी ब्रा में हाथ डालने में डर रहा था इसलिए मैंने उसको इशारा किया और बोली "हाँ.हाँ..आप ब्रा के अन्दर हाथ डाल कर निकाल लो प्लीज़ !!" मेरी बात सुनते ही उसके होंसले बुलंद हो गए और उसने अपना पूरा हाथ मेरी ब्रा के अन्दर घुसा दिया. हाथ अन्दर डालते ही उसको टिकेट तो मिल गया लेकिन साथ में वो भी मिल गया जिसके लिए नौजवान पागल हो जाया करते हैं. मेरी एक चूची उसके हाथ में आते ही वो बदमाश हो गया और उसने मेरी चूची को अपने हाथ से सहलाना और मसलना शुरू कर किया.
मैं तो यही चाहती थी इसलिए मैं उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगी. मुझे मुस्कुराता देख कर वो खुश हो गया और ज़ोर ज़ोर से मेरी चूची दबा डाली. उसके बाद उसने टिकेट निकाल कर चेक किया और मेरी तरफ़ आँख मारते हुए बोला "आप खाना खा लीजिये..मैं बाकी सवारियों को चेक कर के अभी आता हूँ." मैंने भी उसको खुला निमंत्रण देते हुए कहा "ज़ल्दी आना..!!" वो मुस्कुराता हुआ ज़ल्दी से बाहर निकल गया.
मैंने भी ज़ल्दी ज़ल्दी अपना खाना खाया और बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगी. जितनी ज़ल्दी मुझे थी उतनी ही उसे भी थी इसीलिए वो भी पाँच-सात मिनट में ही वापस गया. अन्दर आते ही उसने कूप अन्दर से लाक कर लिया और मेरे करीब कर मुझे अपनी सुडौल बाँहों में भरता हुआ बोला "आओ..मैडम..आज आपको फर्स्ट एसी का पूरा मज़ा दिलवाऊंगा". मैंने भी उसकी गर्दन में हाथ डालते हुए उसके होठों पर अपने होठ रख दिए.
अगले ही पल वो मेरे नीचे वाला होंठ चूस रहा था और मैं उसके ऊपर वाले होंठ को चूसने लगी. इस चूमा चाटी से वासना की आग भड़क उठी थी और ना जाने कब मेरी जीभ उसके मुंह में चली गई और वो मेरी जीभ को बड़े प्यार से चूसने लगा.
उसके हाथ भी अब हरकत करने लगे थे और उसका दायाँ हाथ मेरी बायीं चूची को दबा रहा था. मुझे मज़ा आने लगा था और वो टी टी भी मस्त हो गया था. करीब दो-तीन मिनट की किस्सिंग के बाद वो अलग हुआ और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला "मैडम, एक प्रॉब्लम है !"
मैंने पूछा "क्यूँ क्या हुआ ?"
"मैडम मेरे साथ मेरा एक साथी और है इसी कोच में, अगर मैं उसको ज्यादा देर दिखाई नहीं दूँगा तो वो मुझे ढूँढता हुआ यहाँ जाएगा." वो बोला। "अगर आप इजाज़त दें तो क्या उसको भी बुला....". उसके बात सुनते ही मेरी खुशी ये सोचकर दोगुनी हो गई चलो आज बहुत दिनों बाद एक साथ दो लंड मिलने वाले हैं. इसलिए मैंने तुंरत जवाब दिया " हाँ. हाँ.. बुला लो उसको भी लेकिन ध्यान रखना किसी और को पता नहीं चलना चाहिए. जाओ जल्दी से बुला लाओ."
मेरी बात सुनते ही वो दरवाजा खोल कर बाहर चला गया और तीन-चार मिनट बाद ही वापस गया. उसके साथ एक आदमी और था. ये नया बन्दा करीब पैंतीस साल की उम्र का था. रंग काला लेकिन शकल सूरत से ठीक ठाक था बस थोड़ा मोटा ज़्यादा था. मैंने मन ही मन सोचा चलो दो लंड से तो मेरी प्यास बुझ ही जायेगी भले ही दोनों में ताकत कम ही क्यों ना हो.
उन दोनों ने अन्दर आते ही कूपे को अन्दर से लाक कर लिया और दोनों मेरे पास कर खड़े हो गए. पुराने वाले टीटी जिसका नाम मुझे अभी तक पता नहीं था उसने अपने साथी से मुझे मिलवाया "मैडम ये है मेरा दोस्त वी राजू."
मैंने खड़े होते हुए उससे हाथ मिलाया और पुराने वाले से बोली "ये तो ठीक है पर तुमने अभी तक अपना नाम तो बताया ही नहीं."
मेरी बात पर मुस्कुराते हुए वो बोला "मैडम मुझे दीपक कहते हैं. वैसे आप मुझे दीपू भी बुला सकती हो." मैंने उन दोनों से कहा "दीपू!! तुम्हारा नाम तो अच्छा है लेकिन यार तुम लोगों ने ये मैडम मैडम क्या लगा रखा है. मेरा नाम प्रतिभा है. वैसे तुम लोग मुझे किसी भी सेक्सी नाम से बुला सकते हो."
आपस में परिचय पूरा होने के बाद हम लोग थोड़ा खुल गए थे. लेकिन वो दोनों कुछ शरमा रहे थे इसलिए पहल मुझे ही करनी पड़ी और मैंने दीपू के गले में हाथ डाल कर उसके होंठ चूसना चालू कर दिए. दीपू भी मेरी कमर को अपने हाथों से पकड़ते हुए मुझे चिपका कर चूमने लगा. उसका साथी राजू अभी तक खड़ा हुआ था. उस बेचारे की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कुछ कर सके.
मैंने ही उसको अपने करीब बुलाते हुए उसकी पैन्ट के ऊपर से उसके लंड पर हाथ फेरना चालू कर दिया. कुछ देर तक हम लोग खड़े खड़े ही चूमा चाटी करने लगे. कभी दीपू मुझे चूमता तो कभी राजू मेरी गर्दन पर अपने दांत गड़ा देता. उन दोनों को उकसाने के लिए मैंने उन दोनों के लंडों की नाप तौल शुरू कर दी थी.
जैसे ही वो दोनों अपने रंग में आए तो उन्होंने मुझे उठा कर सीट पर लेटा दिया और फिर अपना अपना काम बाँट लिया. दीपू मेरे होठों को चूसते हुए मेरी छातियों से खेलने लगा और उधर राजू ने मेरी पेंटी निकाल कर चूत का रास्ता ढूँढ लिया.
दीपू मेरी एक एक चूची को बारी बारी से दबा और मसल रहा था साथ में मेरे मुंह में अपनी स्वादिष्ट जीभ भी डाल चुका था. नीचे राजू चूत के आस पास और नीचे वाले होठों को चूसने में मगन था.
मुझे ज़न्नत का मिलना चालू हो गया था लेकिन अभी तक उन दोनों ने अपने कपड़े नहीं उतारे थे इसलिए मैं अभी तक अपने असली हीरो के दर्शन नहीं कर पायी थी.
मैंने उन दोनों को रोकते हुए कहा "रुको..मेरे यारों..केवल मेरे ही कपड़े उतारोगे तो कैसे काम चलेगा तुम लोग भी तो अपने अपने हथियार निकालो."
मेरी बात सुनकर राजू ने अपने कपड़े खोलना चालू कर दिया लेकिन दीपू मेरी चूत का दीवाना हो गया था और चूत छोड़ने के लिए राजी नहीं था. मुझे ज़बरदस्ती उसका मुंह हटाना पड़ा तो वो बोला "मेरी जान पहले तुम भी अपने सारे कपड़े निकालो!"
"क्यूँ नहीं जानू मैं भी निकालती हूँ तभी तो असली मज़ा आएगा..!" मैंने जवाब दिया और अपने बदन से गाउन और ब्रा, पेंटी निकाल कर एक तरफ़ रख दी.
इसी बीच राजू अपने कपड़े खोल चुका था. वोह अपना लण्ड हाथ में लेकर मेरे मुंह की तरफ़ बड़ा. उसके लंड की शेप बड़ी अजीब थी. उसके लंड का रंग बिल्कुल स्याह काला था और लम्बाई करीब छः इंच थी लेकिन मोटाई काफी ज्यादा थी करीब तीन इंच मोटा था.
मैं उसके लंड की बनावट देखते ही सोचने लगी कि ये तो मेरी गांड के लिए बिल्कुल फिट रहेगा. ये सोचते हुए मैंने उसका मोटा लंड अपने मुंह में लेने की कोशिश की लेकिन मोटाई इतनी ज्यादा थी कि मेरे मुंह में लंड घुस नहीं पा रहा था. मैंने जीभ बाहर निकाल कर लंड चाटना शुरू कर दिया. उसके लंड का सुपाड़ा बहुत सुंदर था और लंड से निकलने वाला पानी भी बिल्कुल नारियल पानी के जैसा स्वादिष्ट था. मैं स्वाद ले लेकर चुसाई कर रही थी और मेरे मुंह से बहुत सेक्सी आवाजें निकल रहीं थीं. "सुड़प....सूद...सूद..चाट.......ससू.."
मुझे लंड चूसने में मज़ा रहा था इसी बीच में दीपू ने भी अपने कपड़े खोल दिए और मेरे पास कर मुझे चूसते हुए देखने लगा. मैंने राजू का लंड मुंह से निकाल कर दीपू का लंड अपने हाथ में ले लिया. उसका लंड मेरी उम्मीद से ज्यादा लंबा था. करीब सात इंच लंबा और दो इंच मोटा बिल्कुल गोरा बहुत खूबसूरत लौड़ा था दीपू का. मैंने ज़ल्दी से ट्रेन की सीट पर अधलेटते हुए दीपू का लंड अपने मुंह में भर लिया. उधर राजू मेरी टांगों के बीच में बैठकर मेरी चूत चाटने लगा.
उसने मेरी चूत में अपने पूरी जीभ डाल दी. अचानक जीभ अन्दर डालने से मेरी सिसकारी निकल गई. "आह.........मेरे..पहलवान...मज़ा गया...ऐसे ही चोदो ......हह..मुझे..जीभ सी...से.मेरी दाना....रगड़ो..उधर...हाँ...ऐसे..ही...करते..रहो...शाबाश...राजू..वाह...." मैं मस्त होने लगी थी.
मैंने फ़िर एक बार दीपू का पूरा लंड अपने मुंह में भर लिया और अन्दर बाहर करते हुए अपने मुंह की चुदाई करने लगी. राजू अपनी खुरदरी जीभ से मेरी चिकनी चूत चाट रहा था और मैंने अपने मुंह में दीपू का लंड ले रखा था. ट्रेन अपनी फुल स्पीड पर चल रही थी. मिली जुली आवाजें रहीं थीं "धडक..धडक..खटाक..ख़त..चड़प..चाप..औयो....थाधक......." दीपू के मुंह से भी आवाजें आने लगीं थीं.
"आह...ये...या.एस...वाह...मेरी...जान...चूस...चूसले..ले...और अन्दर...और आदर ले...भोसड़ी...की..और जोर..से..ले..और ले..ले...वाह..." अब उसने मेरे मुंह में धक्के मारना चालू कर दिया था. मुझे लगा कि उसे मज़ा रहा है तो कुछ देर और चूस लेती हूँ क्यूँकि उधर मुझे भी चूत चटवाने में मज़ा रहा था.
लेकिन अचानक दीपू ने मेरे मुंह में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी और मेरा सर पकड़ कर अपना पूरा लंड मेरे मुंह में अन्दर बाहर करते हुए ज़ोर से चिल्लाने लगा "......... ........ले...कॉम...ओं...नं....मेरी...जान...ले..पीले...पूरा..पी..ले..माँ.....चोद.चूस.. चूस...पी...ले..पी.." अचानक मेरे मुंह में पिचकारी चल गई. मैं समझ गई एक तो बिना चूत का स्वाद चखे ही चल बसा. दीपू मेरे मुंह में अपना पानी डाल चुका था मैंने उसका पूरा रस पी लिया. उसके रस का स्वाद अच्छा था. मैंने उसका लंड चाट चाट कर साफ़ कर दिया. झड़ने के बाद उसने अपने लंड बाहर निकाल लिया और हंसने लगा.
उधर शायद राजू भी चूत चूस चूस कर थक गया था इसलिए वो भी उठ कर खड़ा हो गया और मेरे मुंह के पास लंड ला कर बोला "प्लीज़ जान मेरा भी तो चूसो.." मैंने हँसते हुए उससे कहा "तुम दोनों अगर मेरे मुंह में ही उलटी करके चले जाओगे तो मैं क्या करूंगी.." "नहीं मेरी जान, मैं तो तुम्हारी चूत में ही पानी डालूँगा चिंता मत करो." राजू ने जवाब दिया.
मैंने राजू का लंड मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया. थोडी देर तक उसका लंड चूसने के बाद उसने अपना लंड मेरे मुंह में से निकाल लिया और मुझसे बोला. "चल..मेरी रानी..अब..कुतिया..बन जा...आज तेरी चूत का बाजा बजाऊंगा." मैंने फ़ौरन उसका आदेश माना और उलटी हो कर चूत को उसकी तरफ़ कर दिया. उसने भी आसन लगा कर मेरी चूत की छेद पर लंड लगाया और एक करारा धक्का दिया." ...गई...... गया.... गया..मेरे राजा..पूरा..अन्दर....गया.." मैं चिल्लाने लगी.
हमारी चुदाई चालू हो गई थी और उधर दीपू ने ज़ल्दी ज़ल्दी अपने कपड़े पहन लिए थे. जब मैंने दीपू को कपड़े पहने हुए देखा तो चुदवाते हुए ही बोली "क्या....हुआ..दीपू...तुम..नहीं.. ...हह..डालोगे...क्या....हह...एक...ही..बार...में...ठंडा..पड़.... ..गया...क्या ?"
दीपू ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और मुझे चोद रहे राजू के कान में कर कुछ बोला और कूपे से बाहर निकल गया. मुझे चुदाई में बहुत मज़ा रहा था इसलिए मैंने उनकी बातों पर दयां नहीं दिया और ट्रेन के हिलने की गति के साथ ही हिल हिल कर लंड लेने लगी. अब राजू की धक्को की स्पीड बढ़ने लगी थी और ट्रेन के हिलने की वजह से मुझे भी दोगुना मज़ा रहा था.
राजू अब बड़बड़ाने लगा "या..ले...मेरी....जान..ले... पूरा...ले...कुतिया..ले... मेरा..लंड..तेरी...चूत फाड़ डालूँगा...बहन...चोद...ले.." मुझे भी उसकी बातें सुन सुन आकर जोश आने लगा था इसलिए मैं भी बोलने लगी,"चल..और...ज़ोर..से..दे... हाँ..कर...मेरे..रजा.. कर..ले... .चल..अगर..तेरे..लंड..में..दम..है ..तो.. मेरी..गांड...में..डाल.. डाल....गांडू...गांड..में...डाल..." मेरी बात सुन कर उसने चूत में से अपना लंड निकाल लिया और मेरे गाण्ड के छेद पर लगाने लगा. मैंने भी अपनी पोज़िशन ठीक की और गांड का छेद ऊपर की तरफ़ निकाल कर झुक गई और बोली "चल.. .जा.ज़ल्दी..... डाल..दे... गांड...में... धीरे....धीरे.डालना..."
राजू ने गांड के छेद पर निशाना लगाया और एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया लेकिन उसका लंड मेरी चूत के पानी से चिकना हो रहा था इसलिए फिसल गया और नीचे चला गया. उसने दुबारा कोशिश की और इस बार पहले से भी ज़ोर से धक्का लगाया. इस बार लंड ने गांड की पटरी पकड़ ली और मेरी गांड को चीरता हुआ अन्दर चला गया.
मेरी चीख निकल गई "....... ..ईई. .... मार डाला मादरचोद... ऐसे...डालते..हैं..क्या.. फाड़ डाली..मेरी..गांड.. गांडू... मुझे एक बार थोड़ा मरवानी है... ......." लेकिन उसने मुझे पीछे से पकड़ रखा था इसलिए मैं उसका लंड निकाल नहीं पायी और उसने धक्के लगाने चालू कर दिए.
वाकई उसका लंड गज़ब का मोटा था मुझे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उसने मेरी एक भी नहीं सुनी और धक्का लगाना चालू रखा. आठ दस धक्कों के बाद मुझे भी दर्द कम हुआ और मज़ा आने लगा. अब मैंने नीचे से हाथ डाल कर अपनी चूत को मसलना चालू कर दिया था. मेरी इच्छा हो रही थी की मेरी चूत में भी कोई चीज डाल लूँ लेकिन वो दीपू का बच्चा तो खेल बीच में ही छोड़ कर चला गया था.
तभी अचानक कूपे का दरवाजा खुला और तीन आदमी एक साथ अन्दर गए. ट्रेन किसी बड़े स्टेशन पर रुकी हुई थी. अचानक उन लोगों के अन्दर आने से मैं चौंक गई और जल्दी से अलग होकर अपने कपड़े उठा कर अपना बदन छुपाने की कोशिश करने लगी.
उन तीन लोगों के अन्दर आते ही राजू ज़ोर से चहक कर बोला "आओ बॉस !! मैं आप लोगों का ही इंतज़ार कर रहा था. उसने ज़ल्दी से कूपे का दरवाजा अन्दर से लॉक कर लिया और मेरी तरफ़ मुड कर बोला " चिंता मत करो मैडम ये लोग भी अपने दोस्त हैं, अभी तुम्हारी इच्छा चूत में कुछ डलवाने की हो रही थी ना इसलिए इन लोगों को बुलवाया है. चलो शुरू करते हैं."
मुझे इस तरह से उन लोगों का अन्दर आना अच्छा नहीं लगा. मैंने नाराज होते हुए कहा "चुप रहो तुम !! मुझे क्या तुम लोगों ने रंडी समझ रखा है. जो भी आएगा मैं उससे चुदवा लूंगी. तुम लोग अभी मेरे कूपे से बाहर चले जाओ नहीं तो मैं शोर मचा दूंगी."
मेरे इस तरह नाराज होने से वो लोग डर गए और मुझे मनाते हुए राजू ने कहा " नहीं मैडम ऐसा नहीं है अगर आप नहीं चाहोगी तो कुछ भी नहीं करेंगे." जो लोग अभी अभी अन्दर आए थे उनमें से एक ने कहा "नहीं मैडम हमें तो दीपक ने भेजा था अगर आप को बुरा लगता है तो हम लोग बाहर चले जाते हैं. प्लीज़ आप शोर मत मचाना हमारी नौकरी चली जायेगी."
इस तरह वो चारों ही मुझे मनाने में लग गए. मैंने मन ही मन सोचा कि अब इन लोगों ने मुझे नंगा तो देख ही लिया है और अभी तक अपना काम भी नहीं हुआ है. सुबह तो ट्रेन से उतर कर चले ही जाना है फ़िर ये लोग कौन सा कभी दुबारा मिलने वाले हैं. चलो आज आज तो चुदाई का मजा ले ही लिया जाए. फ़िर पता नहीं कब इतने लंडों की बरात मिले.
ये सोच कर मैंने उनको डराते हुए कहा "ठीक है मैं तुम लोगों को केवल आधा घंटे का समय देती हूँ तुम लोग जल्दी जल्दी अपना काम करो और यहाँ से निकल जाओ और अब कोई और इस कूपे में नहीं आना चाहिए."
वो चारों खुश हो गए और "जी मैडम ! जी मैडम" करने लगे. राजू ने उन लोगों से कहा कि चलो अब मैडम का मूड दुबारा से बनाना पड़ेगा तुम लोग आगे जाओ".
वो चारों मेरे करीब गए और दो लोगों ने मेरे एक एक बोबे को हाथ से दबाना शुरू कर दिया और एक जना नीचे बैठ कर मेरी चूत में जीभ डालने लगा. राजू ने अपना लंड जो अब कुछ ढीला हो गया था उसे मेरे मुंह में डाल दिया. अभी उसका लंड पूरा टाइट नहीं हुआ था इसलिए मेरे मुंह आराम से गया और मैं फिर से उसका लंड चूसने लगी.
थोड़ी ही देर में मेरी आग फिर भड़क गई और मैं फ़िर से उसी मूड में गई. मैंने राजू का लंड तैयार करते हुए उससे कहा,"चलो राजू तुम अपना अधूरा काम पूरा करो !"
मेरी बात सुनते ही राजू हँसते हुए मेरे पीछे गया और बोला "क्यों नहीं मैडम अभी लो !!"
अब सब लोगों ने अपनी अपनी पोज़िशन ले ली. मै डौगी स्टाईल में झुक गई एक जन मेरे नीचे था मैंने अपनी गांड नीचे झुकाते हुए उसका लंड अपनी चूत में डाल लिया और पीछे से राजू ने अपना लंड मेरी गांड में डाल दिया. मेरे मुंह के पास दो लोग अपने लंड निकाल कर खड़े हो गए. इस पोज़िशन में आने के बाद घमासान चुदाई चालू हो गई.
अपने सभी छेदों में लंड डलवाने के बाद मैं जल्दी ही अपने चरम पर पहुँच गई और मेरे मुंह से फिर ना जाने क्या क्या निकलने लगा. "..... आबी..अबे..हरामी... राजू...ज़ोर...से. ... कर फाड़ दे दे.दे. ....एई.. मेरी...गा..गा..न्ड. चलो चोदो...मुझे. हराम...के..पिल्लों .. चोदो मुझे...फाड़...दो.. मेरी..चूत भी...बहुत आग..है..इसमे......" मैं ना जाने क्या क्या बोल रही थी और मेरी बातों से वो लोग और भड़क रहे थे.
अचानक राजू ने मेरी गांड में से अपना लंड बाहर निकाल लिया और मेरे मुंह में लंड डाल कर खड़े आदमी से बोला "चल अब तू जा बे तू डाल अब गांड में मैं तो झड़ने वाला हूँ." ये बोलता हुए राजू मेरे मुंह के पास लंड लाता हुए बोला "ले मेरी जान मेरा रस पी ले मजा जाएगा." मैं भी यही चाहती थी इसलिए फ़ौरन उसका लंड अपने मुंह में ले लिया. राजू ने दो चार धक्कों में ही अपना रस मेरे मुंह में उलट दिया.
उधर जिसने मेरी चूत में अपना लंड डाल रखा था उसने भी नीचे से धक्के बढ़ा दिए और जल्दी ही मेरी चूत में उसके वीर्य की बाढ़ गई. अब दो लोग बचे थे और मेरी चूत की आग अभी भी नहीं बुझी थी लेकिन मैं डोगी स्टाइल में खड़े खड़े थक गई थी इसलिए मैं सीट पर पीठ के बल लेट गई और उन बचे हुए दो लोगों से कहा" चलो अब तुम दोनों मेरी चूत में बारी बारी से अपना पानी डाल कर चलते बनो."
पहले एक ने मेरी चूत में लंड डाल कर हिलाना शुरू किया. मुझे पूरा मजा जा रहा था. यूँ तो मैं अब तक चार पाँच बार झड़ चुकी थी लेकिन चूत में लंड डलवाने से होने वाली तृप्ति अभी तक नहीं हुई थी इसलिए मैं जल्दी ही अपने चरम पर पहुँच गई और नीचे लेटे लेटे ही अपने चूतड़ उछाल उछाल कर लंड अन्दर लेने लगी. "..हा. हा.... .जा.. .जा.और अन्दर... .जा.चोद.. हरामी...ज़ोर..से.. चोद...., ,,,जा," मैं झड़ने ही वाली थी कि उससे पहले वो हरामी अपना पानी छोड़ बैठा.
मेरी चूत उसके गरम गरम पानी से भीग गई और मेरा आनंद दो गुना हो गया था और मैं सोच रही थी की ये पाँच दस धक्के और मार दे तो मैं भी झड़ जाऊं. लेकिन वो ढीला लंड था और उसने झड़ते ही अपना लंड बाहर निकाल लिया. मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और मैं बोली "क्या..हुआ...मादरचोद...चोदा..नहीं..जाता..तो लंड..खड़ा..करके क्यूँ जाते हो..चल अब तू जा जल्दी से चोद."
जो आखरी बचा हुआ था वो मेरी गाली सुनकर भड़क गया और जल्दी से अपना खड़ा लंड ले कर मेरी चूत के पास आया और मेरी चूत पर लंड टिकाते हुए बोला " ले..बहन..की..लौड़ी..अभी..तेर.चूत का भोसड़ा बनाता हूँ. अगर आज तेरी चूत नहीं फाड़ी तो मेरा नाम भी पंवार नहीं." उसने जैसे ही अपना लंड मेरी चूत में डाला वैसे ही मैं समझ गई कि ये वास्तव में खिलाड़ी है. उसका लंड काफी मोटा और कड़क था. और फ़िर उसने बहुत तेज तेज पेलना शुरू कर दिया. मैं तो पहले ही झड़ने के करीब थी इसलिए उसका लंड आराम से झेल गई और चिल्लाते हुए झड़ने लगी," हाँ..ये..बात... शाबाश...तू..ही...मर्द र्द..है..रे..फाड़..डाल...तेरे...बाप..का माल.है..और जोर..से..मैं.... रही..हूँ.. मेरे..राजा... ले..मैं..... ..एई ........ ..." और मैं झड़ गई. लेकिन उसने मेरी चूत की चुदाई बंद नहीं की और उल्टा उसके धक्के बढ़ते चले जा रहे थे.
अब मेरी नस नस में दर्द महसूस हो रहा था लेकिन वो ज़ोर ज़ोर से मुझे चोदे जा रहा था. करीब आधे घंटे बाद वो अपने चरम पर गया और बड़बड़ाने लगा "ले...मेरी जान..अब तैयार हो जा तेरी चूत की प्यास ऐसी बुझेगी ..कि तू भी याद करेगी.."
उसके बात सुनते ही मैंने सोचा कि ऐसे लंड का पानी तो चूत की जगह मुंह में लेना चाहिए. ये सोच कर मैंने उससे कहा," मेरे राजा तेरा पानी तो मेरे मुंह में डाल मुझे पिला दे तेरा पानी..मेरे राजकुमार.."
शायद उसकी भी इच्छा ये ही थी इसलिए उसने भी मेरी बात सुनते ही चूत में से लंड निकाल लिया और चूत के पानी से सना हुए लंड मेरे मुंह में ठूस दिया. उसने अपने पूरा लंड मेरे मुंह में डाल दिया जो मुझे अपने गले तक महसूस होने लगा. मेरा दम घुट रहा था लेकिन मैंने उसके ताकतवर लंड का आदर करते हुए उसे मुंह से नहीं निकाला और थोडी ही देर में उसने अपने लंड से दही जैसा गाढ़ा वीर्य निकाला जिसका स्वाद गज़ब का था. मैं उसके रस का एक एक कतरा चाट चाट कर पी गई और मुझे लगा कि जैसे किसी डिनर पार्टी के बाद मैंने कोई मिठाई खाई हो.
तो दोस्तों ये थी मेरी ट्रेन स्टाफ से चुदाई की दास्तान. अगली बार इस से भी खतरनाक चुदाई के लिए तैयार रहें और अपने अपने चूत और लंड की मालिश करते रहें.
तुम्हारी चूत वाली दोस्त..