मेरी
उम्र 24 साल है, कुंवारी हूँ और मेरे घरवाले सब कल्याण में रहते हैं.
कुछ दिनों पहले मेरे एक मामा की पोस्टिंग कल्याण में हो गयी. वो एक बहुत
सीनियर प्रशासनिक पद पर हैं. हालाँकि वो मेरे सगे मामा नहीं तो हैं, मेरी
माँ के घर के पास के रहनेवाले हैं, लेकिन हैं हम लोगो के बहुत ही करीब.
उनकी
उम्र 40+ है. थोड़ा सा पेट निकला हुआ है, लेकिन मोटे तौर पर प्रभावशाली
पर्सनालिटी है. चेहरे पर एक शालीन और सेक्सी मुस्कान निराहती है.
मेरी एक फ्रेंड जोया, जिसकी अब शादी हो गयी है मुझसे अक्सर कहती थी और अब
भी कहती है कि लाइफ में शादी के पहले किसी उमरदराज आदमी के साथ
सेक्स जरूर करना चाहिए.
वो रिश्तेदार टाइप हो तो और अच्छा रहता है. क्योंकि ये सेफ रहता है. इससे
बहुत अच्छा एक्सपेरिएंस प्राप्त होता है और हाँ मजा भी बहुत आता है.
लेकिन में आप लोगों को बता दूँ कि जब तक मैंने खुद एक्सपेरिएंस नहीं किया
था, मुझे उसकी बात हमेशा गलत लगती थी. मैं 21 साल की हो चुकी थी और
सेक्सुअली बिलकुल अछूती थी.
हाँ कभी-कभी बाथरूम में अकेली दर्पण के सामने
खड़ी होकर अपने सुन्दर सुडौल शारीर को निहारती जरूर थी और अपने हाथ अपने ही
जिस्म पर फेरा करती थी. कभी-कभी अपनी निप्पलस को छेड़ती और कभी अपनी
चूत को भी सहलाती थी.
मेरी हिम्मत कभी किसीसे चुदाई करने की नहीं हुई. हाँ, कई साथ के ऑफिस के
लोगों के प्रति आकर्षण जरूर हुआ. कुछ से बात और भी आगे बढ़ी लेकिन सेक्स
नहीं किया. कभी न हिम्मत थी, न ही कर पाई.
हाँ, तो मेरे मामाजी अक्सर हम लोगों के घर आते थे. उनकी पत्नी यानि मेरी
मामी बहुत ही सुन्दर हैं. उनकी जोड़ी बहुत ही अछि है. मेरे मामा और मेरी
दोस्ती भी बहुत गहरी है.
वो बहुत फ्री किस्म के इन्सान हैं. लेकिन हर किसी से नहीं. आम टूर पर अन्य
लोगों के लिए सिरिअस ही रहते हैं. मेरा-उनका तो अब खूब मजाक भी
होने लगा था. एक दिन मामाजी ने मुझे एक मेसेज किया की तुमको मालूम है
रानी मुखेर्जी का किससे अफेयर चल रहा है. मैंने कहा मुझे क्या मालूम. तब
उन्होंने एक और मेसेज भेज कर बताया कि उसका आदित्य चोपड़ा से चक्कर चल रहा
है और उसको आदित्य चोपड़ा से चुदाई करवाते अमिताभ के किसी दोस्त ने
देख लिया था. इसीलिए अभिषेक से उसकी बात आगे नहीं चली.
इस टाइप का मेसेज पढ़ कर मेरे सारे शरीर में एक सिहरन सी फ़ैल गयी. मुझे
लगा कि कोई मुझे कसकर भींच ले. मेरी पैंटी में भी कुछ गीला सा लगने लगा.
मैंने उनके मेसेज का कोई जवाब नहीं दिया. कुछ दिन बाद मामाजी का एक और
मेसेज आया कि तुमको मालूम है अजय देवगन और काजोल में बहुत झगड़ा हो गया था.
मुझसे रहा न गया और में पूछ बैठी क्यों? उनका जवाब आया कि अजय देवगन ने
शादी के बाद भी एक दिन शूटिंग पर काजोल को शाहरुख़ खान से चिपकते अकेले में
मजे करते देख लिया था. वो उससे खूब लड़ा और कहा कि काजोल अब तो तुम्हें
शाहरुख़ से कोई ताल्लुक की जरूरत नहीं होनी चाहिए. तुम दोनों ने शादी के
पहले कितनी बार सेक्स किया मुझे मतलब नहीं. लेकिन अब तो मत मरने जाओ.
मैंने पूछा-मामाजी आपको कैसे ये सब मालूम हो जाता है.
वो बोले -मेरी जन, मेरे साथ के टैक्स ओफ्फिसर्स बॉम्बे की साड़ी खबरें सही-सही बता देते हैं.
अब में और मामाजी काफी फ्री हो गए थे.
रात को में जब कभी अपनी चूत पर हाथ फेरती तो शाहरुख़ खान की बात यद् आती.
उसके बारे में सोचते हुए हाथ फिराती तो अचानक मामाजी का चेहरा सामने
आ जाता. जैसे वो कह रहे हों कि "में क्यों नहीं?
एक दिन एक शादी में मामाजी और मै जा रहे थे. मम्मी ने कहा- सुनीता, घर से
और कोई तो जा नहीं पा रहा. दो दिन की ही तो बात है, तुम मामा-मामी के साथ
चली जाओ. और मुझे जाना पड़ा.
हमलोग पुणे गए और वहां राजधानी होटल में रुके. हमने दो कमरे बुक किये. एक में मामा-मामी साथ थे और दूसरे में मैं अकेली.
शाम को शादी के समारोह के बाद में अपने एक चचेरे भाई के साथ पुणे घुमने चली गयी. मामा-मामी शादी में ही थे.
कोई 9 बजे तक में होटल रूम वापस आ गयी और थकी होने के कारण जल्दी में
सो गयी. अभी थोड़ी देर ही सो पाई थी कि रूम कि बेल बजी. मैंने घडी देखी तो
रात के ११ थे. मैंने दरवाजा खोला तो सामने मामाजी थे.
मैंने पूछा- मामाजी आप अकेले कैसे? मामी कहा हैं?
वो मुस्कराते हुए बोले-तुम्हारी मामी अपनी किसी बहन के साथ रुक गयी हैं. 1
बजे तक आएँगी. फेरों के बाद. मैं चला आया. वो दरवजे पर खड़े थे. मैंने कहा-
ओके मामाजी, अन्दर आ जाओ.
कमरे में सोफे भी थे लेकिन मामाजी सीधे मेरे बेद पर बैठते हुए बोले-
तुम थकी न हो तो चलो कुछ देर बातें कर लेते हैं. मैं राजी हो गयी.
रात के एकांत में मामाजी जैसे आदमी को कमरे में अकेले पा
के अब मेरा मन चल चूका था. में कोई भोरी नहीं थी. मुझे साफ दीख रहा था कि
मामाजी कि नीयत में क्या था. और जो उनकी नीयत में था वही तो मेरी भी नीयत
में था. मैंने सोचा आज इनसे कुछ सेक्स की बातें सीख ही लूं. लेकिन मेरे
अन्दर पहल करने की हिम्मत नहीं थी.
मामाजी जाने क्या बातें कर रहे थे. मुझे तो अपनी चूत में उठ रही सनसनी के मारे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था.
मेरी पैंटी के अन्दर कुछ गीलपन सा महसूस होने लगा था. मैं अभी से पानी
छोड़ने लगी थी. मुझे लग तो रहा था की मामाजी के मन मैं भी कुछ वैसा ही हो
रहा है. लेकिन उन्होंने कुछ किया नहीं. तभी मुझे अपनी फ्रेंड की सीख
याद आई की अपने से उम्र के बड़े लोग सेक्स की पहल खुलेआम नहीं करते. उनका
इतनी रात को अकेले आना इशारे मैं सब कुछ बयां कर रहा था.
अब मेरा तो मन हो रहा था अपनी जवानी का मजा लेने का. सो मैंने भी इशारे में
बात शुरू कर दी. "मामाजी, मामी के अलावा तो किसी पर आपका मन जाता नहीं
होगा? वो तो खुद बहुत सुन्दर हैं.
मामाजी बोले- हाँ, वो तो है.
मुझे लगा की मेरा हिंट बेकार गया.
लेकिन तभी मामाजी बोले- मन तो किसी पर गया है लेकिन उसका नहीं पता.
में बोली- उससे पूछ लीजिये. डरना क्या?
मामाजी जल्दी से बोले नहीं. कुछ सोचते रहे. इस बीच मेरे दिल की धड़कन राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड की हो रही थी.
मामाजी फिर बोल उठे- अच्छा तो पूछता हूँ. तुम बताओ. मुझे तो तुम अच्छी लगती हो.
मैं शर्मा गयी और दूसरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी. तभी मामाजी ने मुझे
बहुत धीरे से अपने सीने से लिप्त लिया. फिर मेरी आँखों पर किस कर दिया.
मैं सिहर गयी और बोली- नो मामाजी, यह ठीक नहीं है. हालाँकि मेरी पैंटी और
चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थीं. मेरी चूत में पुक-पुक हो रहा था. तभी
मामाजी ने मुझको और जोर से चिपटा लिया और मेरे गाल सहलाते हुए मुझे
जहाँ-तहां किस करने लगे.
थोड़ी ही देर में वो मेरे लिप्स चूस रहे थे और में अपना होश खो रही थी.
उनके लिप्स अब मेरी गर्दन पर आ गए थे और हाथ मेरे बूब्स को सहला रहे थे.
में मदहोश हुई जा रही थी. मुझे पता ही नहीं चला कब उन्होंने मुझे बेड पर
बड़े प्यार से लिटा दिया और जब तक मैं समझूँ मेरी पैंटी और ब्रा को बदन से
बहुत दूर थे.
उनके लिप्स मेरी चूचियों को चूस रहे थे. मेरी चूत को पसीना आ रहा था.
मामाजी कह रहे थे- नौट्टी डार्लिंग, अगर तुमको शाहरुख़ खान न भुला दूँ तो
कहना. अब तक वो मेरी जांघों को सहलाते हुए मेरी चूत के नजदीक पहुँच चुके थे
और अगले ही पल मेरी चूत को, जिसे मैंने कल ही हेयर-रिमूवर से साफ किया था,
उसको किस कर रहे थे.
बड़े ही प्यार से. लेकिन भारी रोमांच से भी.
जब उनकी जीभ मेरी चूत के उपरी दरवाजे पर सांप की तरह सरसराते महसूस हुयी तो
मैं मस्ती की तरंग में डूब कर चीख पड़ी. मैंने अपनी दोनों हथेलियों से
उनके सर के बालों को पकड़ लिया और कमर को ऊँचा करके अपनी चूत को पूरी ताकत
से उनके मुंह से अड़ा दिया. मन हो रहा था की चूत को उनके मुंह में भीतर तक
डाल दूं.
मामाजी भी न जाने किस बदहवासी में मेरी चूत में मानों घुसे जा रहे थे.
मैं बुदबुदा रही थी- मामाजी अब नहीं रहा जा रहा. अब तो मुझे बस चोद ही दो. फक मी, प्लीज. डाल दो अन्दर.
लेकिन मामाजी तो बस मेरी चूत को अपनी जीभ से चाटे
जा रहे थे. खूब जोर-जोर से. वे कह रहे थे- तुमको आज इतने अच्छे से
चोदूंगा मेरी जान, कि फिर कभी मुझे भुला नहीं पाओगी. मैं मदहोश,
बेहोश हुई जा रही थी. तभी अचानक मामाजी उठे. उनहोंने दो
तकिये लिए और मेरे नितंबों के नीचे रख दिए. इस तरह मेरी चूत ऊँची होकर
के पूरी तरह खुल गयी.
मामाजी sइस्कारी लेकर बोले- आह, क्या चूत का सीन दिखा है. ऐसी तो
eन्जेलिना जोली की भी नहीं होगी. उन्होंने ढेर सारी क्रीम मेरी चूत
में भर दी और अपने कपडे उतर दिए. मैंने अब देखा कि उनका लंड तो 8 इंच से कम
नहीं था.
अब मैं थोड़ी सी घबराई कि ये कैसे मेरी चूत में घुसेगा. मेरी चूत मुझे
नन्ही सी लग रही थी. मैं उनसे निहोरा करने लगी कि मामाजी धीरे से ही
डालना. उन्होंने कहा कि तुम्हें बस यह यूँ ही छोटा लग रहा है. इसमें तो
दुनिया समां जाती है और तब भोई जगह बची रहती है.
वे अब अपने लंड का पिंक टिप मेरी चूत में पुश करने की कोशिश कर रहे थे.
वो बार-बार स्लिप कर जाता था. फिर उन्होंने निशाना लगा कर अपना लंड मेरी
चूत में अन्दर करीब 3 इंच घुसा दिया. मुझे लगा मनो किसी ने गरम लोहे की
मेरे मोटी राड मेरे अन्दर डाल दी हो.
मैं चिल्लाई- मामाजी प्लीज! इतनी जोर से नहीं. अब निकाल लो अपना लंड.
मामाजी ने लंड को एक बार बाहर को खींच लिया. लेकिन मुझे
जब तक रहत महसूस होती, उन्होंने दुगनी ताकत से अपना लंड फिर मेरे अन्दर पुश
कर दिया.
मेरी आँखों से आंसू और चूत से खून निकलने लगा. मैं चीख रही थी- और मामा धक्के पे धक्के दिए जा रहे थे.
वो पूरी ताकत से अपने लंड को बार-बार अन्दर बाहर कर रहे थे.
मुझे बहुत दर्द हो रहा था. लेकिन कोई
10 मिनट तक उन्होंने ऐसे ही जोरों से मेरी चुदाई की.
अब मुझे मज़ा आने लगा था. मई कहने लगी-यू आर डार्लिंग मामाजी! मजा आ रहा है. चोदे जाओ. निकलना मतमामाजी धक्के पर धक्के लगा रहे थे.
वो कह रहे थे-मेरी जान, तुम्हारी चूत कमाल की है.
मैंने रानी मुखेर्जी का जब केस था तब उसे और ऐसे ही प्रीती जिंटा को चोदा
था. अभी परसों ही बिपाशा को भी चोदा था. लेकिन इतनी मजेदार तो कोई नहीं है.
मैं कहे जा रही थी- मामाजी और डालो मेरे अन्दर. पूरे घुस जाओ. फाड़ दो मेरी भूखी चूत को!
वो खूब चोद रहे थे और मैं भी अब नीचे से उछल-उछल कर चुदवा रही थी.
वो कह रहे थे- मजा आ गया मेरी जान. तुमने तो गजब कर दिया.
मेरी भी सिस्कारियां निकल रहीं थीं. मामाजी अपनी दोनों टांगों से मुझे जकड़-जकड़ कर चोद रहे थे.
थोड़ी ही देर के बाद उन्होंने अपना गरम-गरम मॉल मेरी चूत में भर दिया. अब
दो धक्के और दिए तो मुझे कुछ अजीब सा लगा की ये मेरी चूत को क्या हो रहा
है. मैं जैसे घोड़े पर स्वर हो गयी हूँ.
आह.. आः ... ये तो ज्वालामुखी फट रहा था. और तभी मेरा भी पानी निकल गया.
मैं भी उनके साथ ही झड गयी. फिर हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए पड़े रहे
बहुत देर तक. उसके बाद मामाजी ने फिर से एक बार मुझे चोदा. इस बार उन्होंने
मुझे अपने ऊपर चढ़ा लिया. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. फिर भी मैंने
पूरा लंड मेरी चूत के अन्दर घुसा लिया. इस बार मैं मामाजी के झड़ने से
पहले 3 बार झड़ी. फिर मामाजी ने मुझे निचे पटक लिया और मेरी कोमल चूत को
बुरी तरह से रौंदा. बाद में हमलोग नंगे ही सो गए. सुबह मामाजी ने मेरे
पीछे से चूत में लंड को डाला.
मेरी फ्रेंड्स, खास तौर पर गिर्ल्स, मैं आपको बता रही हूँ मामाजी के अनुभव
से मुझे इतना मजा मिला की बता नहीं सकती. मुझे अपनी फ्रेंड की
सलाह बिलकुल ठीक लगी. आज मेरी चूत और आत्मा दोनों तृप्त हो गयीं. न किसी
को मालूम होने का डर था न ही किसी से ब्लैकमेलिंग का खतरा.
कोई मिले तो कटे सर्दी की दुपहरिया
आज सर्दी अचानक बढ़ जाने से कहीं जाने का मन नहीं कर रहा है.
राजू को फोन किया तो वह अजमेर से बोल रहा था. परसों आएगा. मैं मरी जा रही थी की कोई मिले तो सर्दी की दुपहरिया कटे.
अचानक याद आया कि मेरी भाभी का एक भाई मनीष पढ़ाई करने की नीयत से जयपुर आकर रहने लगा है. ढूँढा तो उसका नंबर भी मिल गया.
मैंने कहा भइया, मेरी तबियत जरा नरम हो रही है. मेरे कमरे पे आ जाओगे क्या?
वह तुरत राजी हो गया. मैं नहीं जानती थी कि उसके मन में क्या था. लेकिन मेरे मन में तो बस एक ही बात रहती
है- लड़का मिले तो चुदाओ.
कोई डेढ़ घंटे लगे उसे मेरे कमरे पर पहुँचने में. घंटी बजी तो बाहर जाकर के
दरवाजा मैंने ही खोला. मकान मालिक जानते हैं मेरे यहाँ लोग आते-जाते रहते
हैं. सो उसकी कोई समस्या कभी रहती नहीं है.
मुझे ठीक-ठाक देख के मनीष जरूर परेशान सा लगा. उसने पूछा- दीदी, क्या हुआ आपको?
मैं बोली- अभी दो गोलियां खाई है तो आराम मिला है. रिस्क लेना नहीं चाहती इसलिए तुम्हें बुला लिया है.
झूठ को आगे बढ़ाते हुए मैंने दरवाजा बंद किया और मनीष को अपने पीछे आने का इशारा करके अपने कमरे की ओर बढ़ गयी.
मैंने कहा- मनीष मेरा सर चकरा रहा है. पहले दो कप चाय बना दो, फिर जरा मेरा सर दबा देना.
उसने बड़ी ख़ुशी से हाँ कर दी और चाय बनाने की तैयारी करने लगा.
मैंने झूठ-मूठ के कहा कि आज मेरा पीरियड का पांचवां दिन है. ब्लड आना तो बंद हो गया है, लेकिन मेरे कमर और पेट में काफी दर्द है.
पीरियड की बात सुन करके वह थोड़ा झेंप सा गया. कुछ बोला नहीं. दर्द की
गोलियां तो मेरे पास रहती ही हैं. मैंने कहा कि वह जरा डब्बे को खोल करके
उनमें से कोई दर्द-निवारक गोली निकाल लाये.
मनीष ने पहले तो चाय बनाया फिर दवा के डब्बे को लाकर के मेरे सामने रखने लगा.
मैंने कहा- मुझसे कुछ नहीं देखा जा रहा. सर चकरा रहा है. तुम खुद ढूंढो.
उसने देखना शुरु किया तो उसे गर्भ-रोधी गोलिया भी मिलीं. मैं यही तो चाहती थी.
उसने जब उन गोलियों को देखा तो उसकी नजरों में वही सब कुछ चमकने लगा जो सब मैं चमकाना चाहती थी.
उसने पूछा- दीदी, इन गोलियों को कौन खाता है?
मैंने पूर्ण सादगी से कहा- मैं ही खाती हूँ जब जरूरत पड़ती है.
मनीष उतना भी भोला नहीं था. फिर उससे मेरा मजाक करने का रिश्ता भी बनता था.
उसने मुस्कराते हुए कहा- फिर आज जरूरत पड़नी ही चाहिए. मैं जो हूँ.
मन ही मन मैं इतरा उठी. मेरी भूमिका तो बन गयी थी. फिर भी मेरा नाटक जारी रहा.
मैंने कहा -तुम्हें मजाक की पड़ी है. यहाँ मैं मरी जा रही हूँ.
मनीष ने तुरंत 'सारी' कहा और मेरे नजदीक आकर मेरे सर पे हाथ फेरने लगा. बोला- पहले चाय पी लो दीदी. फिर मैं सर दबा दूंगा.
सर्दी तो थी ही, मैं कम्बल ओढ़ के पड़ी रही.
मनीष ने जब चाय पीने के लिए दुबारा कहा तो मैं धीरे से बैठी हो गयी और चाय की प्याली पकड़ ली.
चुस्कियां लेते हुए मैंने कहा कि वह जरा पानी भी गरम कर दे ताकि हॉट बैग से मैं पेट की सिकाई भी कर लूं.
बिलकुल ही आज्ञाकारी प्राणी की तरह वह मेरे आदेश का पालन करता जा रहा था.
चाय पीने के बाद मैं फिर लेट गयी और कम्बल अपने ऊपर डाल लिया.
मनीष थोड़ी ही देर में हॉट बैग को भर लाया. मैंने उसे हाथ में लेना चाह तो उसने मना कर दिया. बोला- आप रहने दो. मैं सेंक देता हूँ.
बैग ज्यादा ही गरम था. लेकिन उससे भी ज्यादा तो मेरी चूत गरम होकर पानी छोड़ रही थी.
मनीष ने कम्बल हटाना चाहा तो मैंने कहा की मुझे सर्दी लग रही है. कम्बल मत हटाओ. उसके भीतर से ही सिकाई कर लो.
मुझे पता था कि परदे में मनीष को हरकत करने में सुविधा होगी. मैं वही तो चाहती थी. नहीं तो इतनी दूर परेशान करने कि क्या जरूरत थी.
मनीष ने पूछा कि दर्द कहाँ हो रहा है. मैंने पेट के निचला हिस्सा बता दिया.
कम्बल के भीतर से पहली ही कोशिश में उसका हाथ मेरी चूत से टकराया. चाहे
जानबूझ के या अनजाने में. मैंने मुस्कारे के मनीष को एक नशीली मुस्कान के
साथ देखा फिर प्यार से झिड़कते हुए बोली- कोई बदमाशी नहीं करनी.
मनीष बोला- चिंता मत करो. मैं बस वही करूंगा जो करना है.
उसने बैग तो मेरे पेट पर रख दिया और चूत को मेरी सलवार के ऊपर से ही सहलाने लगा.
अब नाटक करना बेकार था. मैं मजे के मारे ऐठने लगी थी. बैग मैंने अलग फेंक
दिया और मनीष को खींच के अपने सीने से लगा लिया. अब क्या था. मनीष भी मुझसे
चिपट कर मेरे होंठों को चूसने लगा.
उसके हाथ मेरी समीज के भीतर घुस गए और मेरे बूब्स को दबाने-सहलाने लगे.
मैंने मनीष का शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए तो वह पीछे हट गया और खुद ही कपड़े उतरने लगा.
शर्ट दूर फेंकने के बाद उसने अपनी जींस भी उतार दी लेकिन चड्ढी उतारे बिना ही वापस मेरे ऊपर चढ़ गया.
उसने मेरी समीज ऊपर करनी शुरू कर दी तो मैंने उसे पीछे धकेल कर हटाया और खुद ही अपनी पोषक से आजाद होने लगी.
अभी बमुश्किल मेरी बूब्स दीखनी शुरु हुई ही थी कि उतावला मनीष उनसे लग गया. एक को दबाया और दूसरी को चूसना शुरु कर दिया.
मैंने हंस कर कहा- कपड़े तो उतार लेने दो भई.
लेकिन बिना बोले वह तो लगा रहा. इसके पहले कि मैं सलवार तक पहुँचती, मनीष
ने ही उसका नाड़ा खोल दिया. मैंने न तो ब्रा पहना था न ही चड्ढी.
मनीष को सब बड़ा प्यारा लग रहा था. वह सरकते हुए मेरी चूत तक पहुँच गया और अपनी जीभ मेरी फांक में डाल दी.
उसने अपनी दोनो हथेलियों से मेरे दोनो जांघों को अलग फैलाया और फिर अपनी
उँगलियों से चूत को चौड़ी करते हुए अपनी जीभ और भी भीतर ले जाते हुए मेरी
चूत-घुंडियों को चाटने लगा.
इतना मजा हर कोई नहीं दे पाता है. मुझे पहले पता नहीं था कि यह लड़का इतना एक्सपर्ट निकलेगा.
काफी मजे लेने के बाद मैंने कहा- अब मुझे अपना लंड चूसने दो.
मनीष पीछे हटा तो मैंने देखा कि उसकी चड्ढी तम्बू बन रही थी. उसने खुद ही
अपनी चड्ढी उतारी और आगे बढ़ के अपना लम्बा सा लंड मेरे मुंह में दे दिया.
लंड को चूसने का काम मैं भी बखूबी कर लेती हूँ. जब मैंने अपनी कलाकारी
दिखानी शुरु करी तो मनीष ने मुझे बालों से पकड़ लिया और अपना लंड मेरे गले
तक पहुंचा दिया.
मैंने अपनी एक हथेली से उसके अन्डकोशों के नीचे की जगह को सहलाना शुरु कर दिया.
बस विस्फोट हो गया.
मनीष ने अपना पूरा माल मेरे मुंह में ही निकाल दिया.
मैंने एक भी बूंद बाहर नहीं जाने दिया. मनीष का चेहरा बता रहा था की उसे कितना जोर का मजा आ रहा था.
मेरी चूत प्यासी रह गयी थी.
मनीष को इस बात का मलाल भी हुआ तो मैं बोली- कोई चिंता न करो. आज मैं
तुम्हें कहीं नहीं जाने दे रही. आओ मेरे साथ कम्बल में समां जाओ. गरम
होकरके फिर करेंगें. अब भी और रात में भी. मेरी तबियत अब नरम नहीं गरम है.
मनीष कुछ नहीं बोला. बस मेरे होठों को चूसता हुआ मेरे ऊपर चढ़ गया. मैंने एक हाथ से ही कम्बल खींच के अपने दोनो पर डाल लिया.
दोस्तों
मेरा नाम sabbo है .मैं अपने मम्मी-पापा और एक बड़े भाई साथ सौरभ नगर
कोलीनी में रहती हूँ. हमारा फ्लैट तीसरी मंजिल पर एकदम कोने पर है. दो साल
पहले ही हमारी कालोनी बनी थी और यह अभी भी मुख्य शहर से बहुत दूर है।
दो
साल पाहले यहाँ जंगल और खेत थे. आज तक कालोनी को जाने के लिए पक्का रोड
भी नहीं बन पाया है. रात के दस बजे के बाद चारों तरफ कोई आदमी दिखाई नहीं
देता. कालोनी के बहुत से फ्लैट अभी भी खाली पड़े हैं. मेरे
पापा रेलवे में गार्ड हैं और तीन दिन के बाद वापस घर आते हैं. मैंने कई
बार छुप के देखा है कि घर आते ही कैसे वे मम्मी पे टूट के चोदते हैं. मेरा
बड़ा भाई नरेश एम काम कर रहा है. उसकी शादी तय हो चुकी है लेकिन वह मेरी
काया का दीवाना है. जब भी मैं नहाने जाती हूँ वह छुप के देखता है. मैं
20 साल की हो चुकी हूँ और अकेले पिछले महीने ही तीन बार चुदा चुकी हूँ.
लेकिन मम्मी को इसकी खबर नहीं है. मम्मी अगले साल मेरी भी शादी करवाना
चाहती हैं. वे शादी के लिए जेवर और रुपया अपने लोकर में जमा करती रहती
हैं. हमारी
कालोनी में अक्सर लाईट भी चली जाती है. ऐसे में कालोनी के लोग घरों में
भीतर ही बैठे रहते हैं। कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है. यह
इसी साल दिसंबर की बात है. में अपनी मम्मी के साथ उनके कमरे में थी. मेरा
भाई पढ़ कर अपने कमरे में सो गया था. तभी अचानक लाईट चली गयी. रात
के करीब ग्यारह बज चुके थे। मम्मी को जीने पर किसी के पैरों की आहट और बात
करने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने मुझे खिड़की से बाहर देखने को कहा. मुझे
कोई भी दिखाई नहीं दिया. तभी किसी ने घर के दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. मुझे
लगा शायद पापा जल्दी घर आ गये हैं. मैं दरवाजा खोल ही रही थी कि तीन लोग
दन्न से भीतर हाल में घुस आये. इसके पहले कि मम्मी मामला समझती, एक आदमी ने
मम्मी के गाल पर जोर का चांटा मार दिया. मैं घबरा कर जीने के नीचे छुप गयी. हाल में होनेवाली घटना चुपचाप देखने लगी. तभी
लाईट जैसे अचानक गयी थी वैसे ही अचानक आ भी गयी. मैंने देखा तीन
लुटेरे हाथ में चाकू लेकर मम्मी को वश में किये हुए हैं. तीनों लुटेरों की
आयु लगभग 25 से 30 साल के बीच की थी. एक ने मम्मी के गले पर चाकू रखा तो
मम्मी ने पूछा तुम लोग कौन हो और क्या चाहते हो. वह
बोला मादरचोद देखती नहीं हम कौन हैं. बड़ी भोली बनती है. हमें पता है
तूने काफी माल जमा कर रखा है. ला साली लाकर की चाबी दे और सारा माल हमारे
हवाले कर दे. वरना तुझे यहीं काट कर रख देंगे. डर के
मारे मम्मी ने सारे जेवर और रुपये उनको दे दिये. मम्मी रोने लगी तो एक ने
दोबार मम्मी को ऐसा जोर का चांटा मारा की वह पलंग पर गिर गई. वे हाथ जोड़
कर बोलीं कि अब मेरे पास कुछ नहीं है. मुझे छोड़ दो. चाकूवाले
ने दूसरे लुटेरे से कहा बल्लू मकान की ठीक से तलाशी ले. फिर उसने
नोचा-चोथी करते हुए एक-एक करके मम्मी के सारे कपड़े उतार दिए. शर्म के मारे मम्मी ने अपनी चूत पर हाथ रखना चाहा तो चाकू वाले ने हाथ हटा दिया. वह
बोला- साली कहीं चूत में कुछ छुपा तो नहीं लिया है. उसने मम्मी की चूत में
उंगली डाल कर देखा. फिर उनको पलंग पर गिरा उनपे चढ़ कर उनको चूमने लगा. बाकी दोनों लुटेरे घर में सब जगह तलाशी लेने लगे तो उन्हें मैं सीढियों के नीचे छुपी हुई मिला गयी. उनमे एक जोर से चिल्लाया-सत्तो माल मिल गया. बड़ा कीमती माल है। मुझे
अचानक समझ आ गया कि यह लुटेरे कौन थे. जिसे यह लोग सत्तो कह रहे थे मैं
उसे जानती थी. उसका असली नाम सतीश था. वह कभी मेरे भाई के साथ पढ़ता था.
सतीश को पहचानने के बाद मैं बाक़ी दोनों को भी जान गयी. जिसे यह लोग
बल्लू कह रहे थे उसका नाम बलदेव था और तीसरा अजीत था। तीनों अच्छे घर के लड़के थे लेकिन बुरी संगत में पड़ के ऐसे काम करने लगे थे। उन दोनों ने मुझे बालों से पकड़ कर सतीश के पास खींच लिया. सतीश मम्मी से बोला- हरामजादी झूठ बोलती है कि अब कुछ नहीं है. यह माल क्या तेरी चूत से आ गया है? आवाज
सुन कर मेरा भाई जाग गया. तीनों ने उसे भी हाल में घसीट लिया और उसे पीटने
लगे. मम्मी बोली तुम लोगों को जो लेना था वह ले चुके अब मेरे लड़के को
क्यों मार रहे हो?
जब
मम्मी गुस्से में गाली देने लगी तो अजीत बोला- रंडी तुझे अपने पर बड़ा
प्यार है. अब जब तक तू अपने इसी लड़के से नहीं चुदवायेगी हम उसे पीटना नहीं
छोड़ेंगे. उसे तेरे सामने ही यहीं काट कर fenk देंगे. सतीश ने चाकू दिखा कर नरेश से कहा चल अपनी माँ की चुदाई कर. तुझे आज सचमुच का मादरचोद बनाए देते हैं।
उन्होंने नरेश के सारे कपड़े उतरवा दिए और मम्मी के ऊपर चढ़ा दिया. शर्म के मारे नरेश का लंड खड़ा नहीं हो रहा था.
अजीत बोला-साले लंड जल्दी तय्यार कर, नहीं लंड काट कर तेरी माँ की चूत में घुसा देंगे. फिर लंड के बिना हिजड़ों में डोलता रहेगा.
मम्मी घबरा गयीं. खड़ा करने के लिए खुद ही नरेश का लंड चूसने लगी. ऐसी
हाल में अब मुझे नरेश का लंड बड़ा प्यारा लगने लगा था. लुटेरों का
परिचय पाकर मेरा भय दूर हो गया था. लेकिन नरेश झिझक रहा था और अपना लंड
मम्मी की चूत में नहीं घुसा रहा था. यह
देख कर मम्मी ने कहा बेटा यह लोग जैसा कहें वैसा करो. मुझे चोदने में में
कैसी शर्म. आजा बेटा जल्दी से लंड अन्दर घुसा दे और अपनी माँ की इज्जत
बचाले. अगर तू नहीं चोदेगा तो ये मुझे चोदेंगे और मैं इनसे चुदवाना नहीं
चाहती. इतना
सुनते ही नरेश का लंड फनफनाने लगा. उसने अपना लंड अपने हाथ में लेकर मम्मी
की चूत के मुहाने पर रखा और एक ही झटके में पूरा लंड मम्मी की चूत में
घुसा दिया. मम्मी का समर्थन पाकर वह जोरों से भीतर की ओर धक्के भी मारने
लगा.
मम्मी जोर जोर से ओह-ओह, उई-उई करने लगी. सतीश बोला- यार यह माँ बेटे की चुदायी देख कर अपना लंड भी खड़ा हो गया है. मम्मी
को मेरे सामने चुदवाने में कोई शर्म नही आ रही थी. वह तो नरेश के लंड का
स्वाद ले रही थी. देख कर साफ पता चल रहा था कि उसे जवान बेटे से चुदाने में
बड़ा मजा आ रहा था.
मम्मी को धन के लुटने का कोई दुःख दिखाई नहीं दे रहा था. वह नरेश के हरेक धक्के पर अपनी कमर उछाल रही थी. तभी अजित ने आगे बढ़ के अपना लंड मम्मी के मुंह में दे दिया तो वे उसे भी बड़े प्यार से चूसने लगीं. जब
नरेश थोड़ा ढीला पड़ा तो मम्मी ने अजित का लंड चूसना छोड़ दिया और नरेश से
कहने लगी-तुम तो मेरे बेटे हो. लेकिन बहुत दिनों से मेरा मन तुम पर आ रहा
था. मेरे जवान भाइयों ने मुझे खूब चोदा है. लेकिन आज तक मुझे ऐसे में किसी
ने नहीं चोदा. तुम दोगुनू ताकत से धक्के मारो. तुमने जितना मेरा दूध पीया
है उतना ही अपने लंड का रस मेरी चूत में डाल दो।
यह देख-सुन कर खुद मेरी चूत गीली हो रही थी. काफी देर तक चुदाई करने के बाद नरेश ने अपना वीर्य मम्मी की चूत में डाल दिया.
वीर्य
चूत से बाहर आ रहा था. यह देख कर सतीश ने मेरे बाल पकड़ कर मेरा मुंह
मम्मी की चूत पर रख दिया और बोला-साली देखती क्या है, जल्दी से चूत का सारा
रस चाट ले. क्या तझे अपने भाई के लंड का और माँ की चूत का रस पसंद नहीं
है. पी ले पी ले. इससे तुझे हमारे लंड झेलने की ताकत मिल जाएगी. हमारे लंड
लेने में दर्द नहीं होगा। अब तेरी बारी है. बता, पहले किसका लंड लेगी?
तीनों ने तुरंत ही अपने लंड मेरे सामने निकाल कर दिखाए. सभी लंड काफी बड़े थे. मेरे समझ में नही रहा था कि मैं कौन सा लंड लूँ. मैं माँ की तरफ देखने लगी.
माँ ने भी तीनों लंड देखे और लुटेरों से बोली- तुम लोग खुद तय करो. लेकिन समझ लो मेरी लड़की ने अभी तक लंड का स्वाद नहीं लिया है.
अजीत
बोला- यह तो और अच्छी बात है. आज आपके सामने ही आपकी लड़की की चूत का
उदघाटन होगा. आपकी लड़की किस्मतवाली है. एक साथ तीन लोगों से सुहागरात मना
रही है. भविष्य में उसे लंड लेने में कोई तकलीफ नहीं होगी. हम पहले सबसे
बड़े लंड से चूत की सील तोड़ेंगे. तुम उसे हिम्मत दिलाना की वह लंड
बर्दाश्त कर ले।
मम्मी
ने मेरी चूत में अपनी जीभ डाल कर उसे चिकनी कर दी और बोली-बेटा हरेक लड़की
को एक न एक दिन लंड लेना ही पड़ता है. मुझे भी पहली बार कुछ दर्द हुआ था,
लेकिन आज मैं हरेक तरह के लंड आराम से ले सकती हूँ. औरत
की जिन्दगी तो चुदवाने के लिए होती है. चाहे उसका पति चोदे या कोई और.
इसलिए तू आराम से चुदवाले. मैं तेरे पास रहूँगी और तेरी चूत फैलाती रहूँगी
ताकि लंड के लिए जगह बनती रहे।
मम्मी के समझाने पर मैं तैयार हो गयी और टांगें फैला कर पलंग पर लेट गयी. अजित का लंड सबसे बड़ा करीब ८ इंच का था. उसने अपने लंड का सुपारा चूत के छेद पर रखा और धीमे-धीमे घुसाने लगा. जब आधा लंड अन्दर चला गया तो मम्मी बोली- पूनम शाबाश. हिम्मत रखो.
अजीत ने लंड थोड़ा सा बाहर निकला और एक जोरदार धक्का मारा. लंड चूत को फाड़ते हुए पूरा अन्दर चला गया. मैं जोर से चिल्लाई -मम्मी बचाओ मेरी चूत फट रही है. यह लंड बहुत बड़ा है.
मम्मी बोली धीरज रखो आगे से अब ये छोटे लंड से तुम्हारी चुदायी करेंगे. मेरी चूत से अब पानी आने लगा था और अजीत लगातार धक्के मार रहा था. मम्मी
भी अपनी चूत में उंगली कर रही थी और मजे ले रही थी. उधर नरेश का लंड भी
दोबारा खड़ा हो गया था तो मम्मी ने उसे फिर अपने ऊपर चढ़ा लिया. कोई दस मिनट के बाद मुझे भी मजा आने लगा. चूत से फचाफच की आवाज आने लगी।
मम्मी बोली पूनम अब तुम चुदवाने के लिए काबिल हो गयी और मेरी तरह रोज चुदवाया करोगी।
बाद
में दोनों बाक़ी लड़कों ने भी मेरी जम कर चुदाई की और मम्मी की दोबारा
गांड मारी. लगातार कई बार चुदने के कारण मेरी चूत सूज गयी थी और दुखने भी
लगी थी. लेकिन मुझे इतना मजा आया था कि मैं और भी चुदाने को तैयार थी. एक
बार भाई से भी. एक
ही झटके में हम सभी की सेक्स के बारे में झिझक और शर्म दूर हो गयी. मैं
सोचने लगी की अब मैं जब चाहे खुलेआम जिससे चाहे चुदवा लुंगी.
सतीश मेरे भाई से बोला तुम भी पूमम की सील टूटी चूत का मजा ले लो. ऐसा मौक़ा तुम्हे फिर जाने कब मिलेगा. मम्मी
बेशर्मी से बोली- बेटा फिर बहिन के आगे अपनी माँ को नहीं भूल जाना. मुझे
भी अपना लंड देते रहना. तुम्हारा जवान लंड है. अब तुम्हारे पापा के लंड में
मेरी चूत की प्यास बुझाने की ताकत नहीं रही.
जाते-जाते
तीनो लुटेरों ने सारे जेवर और रुपये वापस कर दिये और बोले- आंटी आपने और
पूनम ने बड़ा मजा दिया. जब भी हमारे लंड की जरूरत हो याद कर लेना. अजीत बोला- पूनम की चूत बड़ी मस्त है. काश मेरी शादी पूमम से हो जाती।
मम्मी ने पूछा- बोलो पूनम तुम्हें अजीत का का लंड कैसा लगा. तुम अजीत से शादी करोगी?
मैंने अजित के लंड का ध्यान किया. दमदार था. मैं तैयार हो गयी. आज मैं अजीत की पत्नी हूँ और अजीत से रोज चुदती हूँ. कभी-कभी भाई नरेश भी मुझे चोद लेता है.
बाक़ी
और लोग भी कभी मुझे और कभी मेरी मम्मी की चुदायी करने आते-जाते रहते हैं।
अजित को कोई आपत्ति नहीं होती. उसे बदले में खर्च करने को काफी पैसे मिल
जाते हैं. वह
भी जब मन होता है मेरी मम्मी को भी चोद लेता है. चारो तरफ सर्वानन्द है.
कोई कभी भी जो राजी हो जाये उसे चोद ले. किसी के सामने भी. कोई परवाह नहीं
करता.
कभी आप भी आओ न! हम पैसे नहीं मांगते. जो दे जाओगे, चलेगा.
ऋचा
मेरी बेहतरीन सहेलियों में से है. हम दोनों न सिर्फ क्लासमेट हैं बल्कि
हमारी पसंद, शकल-सूरत और ऊँचाई भी एक सी है. हम दोनों के दूसरे की
सेक्स-मित्र भी हैं. यह भी बता दें की हमारी ब्रा का साइज भी एक ही है-- 32
में बड़ावाला.
चूत के मामले में मैं थोड़ी भारी पड़ती हूँ. मेरी चूत का आकार ऋचा के मुकाबले बड़ा है.
ऋचा
के पापा, हरीशजी, हमारे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर भी हैं. वे शुरू से ही मुझ
पर कामुक नीयत रखते थे. वे कई बार इशारे में मुझे सेक्स का न्योता भी दे
चुके थे.
एक दिन उन्होंने एकांत पा करके मुझे अचानक भींच लिया. पहले एक हाथ से मेरे बूब्स को मसला फिर मेरे होठों को भी चूसने लगे.
हालाँकि
मैं उन्हें ताउजी कहती हूँ, फिर भी अगर वे मुझसे सेक्स करना चाहते थे
तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी. मैंने भी उन्हें बराबर की टक्कर दी. मैंने
उनके पैंट की जिप खोल करके पहले उनका लंड हाथ में लिया और बाद में मुंह में
लेकर तब तक खेलती रही जब तक वे झड़ नहीं गए. मेरे मुंह में ही.
तबसे वे मेरे दीवानों में शामिल हैं. आखिर मैं जवान और सेक्स के लायक हूँ. कोई मुझे न चोदना चाहे तो मेरे लिए शर्म की बात होती है.
वैसे भी, मैं नए, कमसिन लौंडों बजाय उमरदराज लोगों की फ़िराक में
अधिक रहती हूँ. सेक्स के लिए मुझे या तो लड़कियां या फिर बुजुर्ग हीं पसंद
हैं.
एक
दिन मैं उनके साथ अकेले में बैठ कर उनके लंड को सहला रही थी. वे मजे के
मारे छटपटा रहे थे. तभी मुझे ख्याल आया कि उनकी बिटिया, ऋचा, ने आज तक किसी
मर्द का मजा नहीं लिया है. हालाँकि उसकी चूत कुंआरी नहीं है.
उसने मेरे सेक्स खिलौनों का स्वाद खूब लिया है. कई प्रकार के कृत्रिम लंड
उसके चूत में जाने कितनी बार समा चुके हैं. मेरी उँगलियाँ और जीभ तो उसकी
चूत में डली ही रहती हैं. इनसे उसका काम चलता रहता है.
फिर भी, मर्द तो मर्द ही होता है. उसको अभी तक असली लंड नहीं मिला था.
मैंने अचानक ही हरीशजी से पूछ लिया- ताउजी, मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं लगती हूँ क्या?
बिलकुल, बेटा! ताउजी ने शरारती अंदाज में कहा- तुम मेरी बेटी हो और मैं बेटीचोद.
मैंने
ताऊ के लंड पर कार्रवाई तेज कर दी. उन्हें जब और भी मजा आने लगा तो मैंने
फिर पहले की ही तरह अचानक ही प्रश्न किया- आपने कभी ऋचा को चोदा है?
वे सकपका गए. फिर धीरे से बोले- नहीं तो!
फिर बेटीचोद कैसे? मैंने बात आगे बढ़ाई .
ताउजी समझ गए कि मैं क्या कहना चाहती हूँ.
उन्होंने बात को सम्हालते हुए सफाई दी- असल में यह विचार कभी मेरे मन में
आया ही नहीं. हमारे यहाँ ऐसा माहौल भी नहीं है. फिर ऋचा ने भी तो कभी कोई
इशारा तक नहीं दिया है.
मैं बोली-तो क्या वह हाथ में बैनर लेके आये कि पापा मुझे चोद दो?
अब ताउजी तय नहीं कर पा रहे थे की क्या कहें. बस मेरी तरफ देखते रहे.
मैं धीरे से उनके लंड पर चढ़ने लगी. जब उनका लंड मेरी चूत में पूरी तरह से
घुस गया तो वे झटके देने की कोशिश करने लगे. मैं मजे लेते हुए बात को आगे
बढ़ाने लगी.
मैंने
कहा कि ऋचा को पता है कि ताईजी के साथ आपका सेक्स जीवन करीब-करीब खत्म सा
है. वे अब सेक्स में कोई रुचि नहीं लेतीं. ऋचा को इस बात का अफ़सोस भी है
क्योंकि वह जानती है कि आप आज भी सेक्स में रुचि रखते हो. आपको सेक्स की
जरूरत है.
उसे यह भी पता है कि आप मेरे से सेक्स करते हो. मुझे चोदते हो.
ताउजी झुंझला के बोले- तो क्या इसी वजह से मैं अपनी बिटिया को चोद दूं?
मैंने अगला प्रश्न किया- तो फिर मुझे क्यों चोदते हो? मैं आपकी बिटिया जैसी नहीं हूँ क्या?
ताउजी निरुत्तर हो गए. मैं जानती थी वे मेरे बारे में कोई कठोर वचन कढ़ा के मुझे खोने की जोखिम नहीं ले सकते थे.
थोड़ी
देर तक मैं उनके लंड पर उछलती रही. जब मुझे लगा कि वे झड़ जायेंगे तो मैं
हट गयी और उनका लंड अपने मुंह में ले लिया. उन्हें ज्यादा मजा आने लगा था.
वे हमेशा ही मूड बनाने के लिए ऐसा ही करते थे. मुंह में दिए बगैर वे पूरे मन से चोद नहीं पाते थे.
मैंने अपनी एक ऊँगली उनके गांड में भी डाल दी. यह उनकी दूसरी पसंदीदा स्टाइल थी.
गांड में ऊँगली डालते ही किसी के लंड को खड़ा होते मैंने पहले न तो देखा, न सुना था. लेकिन ताउजी तो ऐसे ही गरम होते थे.
उन्होंने मेरे बालों को पकड़ लिया और अपने लंड को मेरे मुंह में भीतर तक धकेलने लगे.
जब
पूरी तरह गरम हो लिए तो वे अपनी शर्ट उतारने लगे. मुझसे भी कहा कि अब मैं
भी अपने कपड़े उतार दूं. मैं उनके लंड की चुसाई छोड़ के अपने कपड़े उतारने
लगी. हरीशजी तो पहले ही नंगे हो चुके थे. जब मैं बिलकुल ही नंगी होकर उनके
खड़े लंड पर दुबारा चढ़ने लगी तो मैंने अचानक पूछ लिया- ऋचा को बुलवाऊं
क्या?
ताउजी शेखी मारने के अंदाज में बोले- अब किसी को भी बुलवा लो. उसीको चोद
दूंगा. मैं ऋचा तो क्या उसकी सारी सहेलियों को भी चोद दूं. पर वह चुद्वाए
तो सही.
थोड़ी ही देर में मैंने उछल-उछल कर ताउजी को झटके देने शुरु कर दिए. जब वे
झड़ने ही वाले थे तभी मैंने उनको अपने ऊपर कर लिया. एक चीख सी मारते हुए
उन्होंने हमेशा की तरह अपना ढेर सारा मॉल मेरी चूत में निकल के मुझे तर कर
दिया.
जब वे पस्त होकर पीछे हटे तो मैं भी उनसे अलग होकर ऋचा को अपनी मोबाइल से काल मिलाने लगी.
वे उलझन में पड़ गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हुआ और क्या हो रहा है.
उन्होंने पूछा- अचानक किसे फोन करनी की जरूरत पड़ गयी?
मैंने जबाब दिया- ऋचा को. मैं उसे बुला रही हूँ.
ताउजी उलझन भरी नजरों से मुझे देखते रहे. ऋचा को काल करने के बाद मैं वापस
ताऊ के लंड को सहलाते हुए उस पर चढ़ने लगी. मैंने गौर किया कि कुछ तो मुझे
अभी-अभी चोद के फ्री होने के कारण और कुछ ऋचा का नाम सुन कर ही उनका लंड
ढीला पड़ गया था.
उन्होंने थोड़ा नर्वस अंदाज में पूछा- ऋचा आ रही है क्या?
मैं बोली- वह यहीं है और हमें चुदाई करते हुए देख के गयी है.
ताऊ का मुंह खुला का खुला रह गया.
तभी ऋचा कमरे में आ गयी.
मैं वापस ताऊ के लंड से लग गयी. उसे मुंह में लेकर चूसने लगी. धीरे-धीरे वे मूड में आने लगे.
मैंने ऋचा को कपड़े उतारने का संकेत किया और ताउजी के गांड में एक बार फिर ऊँगली डाली.
ऋचा की नंगी जवानी और उठी हुयी जबरदस्त चूचियों को देख के वे सन्न रह गए.
मेरे अलग हट जाने से उनका लम्बा लेकिन लटका हुआ लंड अब हम दोनों के साफ सामने था. ऋचा बड़ी हसरत से उसे देख रही थी.
मैंने आगे बढ़ के उसे सहलाना शुरू कर दिया. वे अब एक बार फिर तुरत ही टन्न
हो गए. तब मैंने उनका लंड तो हाथ में पकड़े रखा लेकिन थोड़ा पीछे हटते हुए
ऋचा को चार्ज दे दिया.
'आ मेरी बुलबुल. अपने पापा पे चढ़ जा.'
ऋचा ने बिना झिझक मेरे हाथ से अपने बाप का लंड ले लिया और उसे चूसने
की तैयारी करने लगी. वह अपने घुटनों के बल बैठ गयी और बड़ी सफाई से हरीशजी
के लंड को चूसने लगी. मैं उसके पीछे बैठ कर उसके मस्त कूल्हों को सहलाती
रही.
थोड़ी देर में मैंने उसकी चूत की खबर लेने के लिए अपनी हथेली को वहां फिराया. सब कुछ गीला-गीला सा हो रहा था.
अब मैं खड़ी हो गयी और पीछे से ही ऋचा को उसके जांघों से पकड़ के उठाते हुए उसके बाप के लंड पर धर दिया.
मेरा निशाना सही नहीं था.
हरीशजी का लंड चूत में नहीं गया. तब ऋचा ने खुद अपने हाथ से अपने बाप का लंड सेट किया और एक जोर का धक्का दिया.
एक ही बार में गच्च से हरीशजी का लंड ऋचा चूत में समा गया.
मजे के मारे ऋचा चीख पड़ी- अह! मैं मरी रे बबिता. तू किधर है?
मैं तो वहीँ थी.
हरीशजी ने अब सारी झिझक छोड़ के ऋचा को पटक लिया और उसके ऊपर चढ़ के उसे
पूरी ताकत से चोदना शुरु कर दिया. ऐसा लग रहा था मानो वे कोई खुन्नस सी
निकाल रहे हों.
अभी थोड़ी ही देर पहले वे झड़ के अलग हुए थे. इसलिए काफी देर तक वे मजे
लेकर ऋचा को चोदते रहे. उन्होंने ऋचा को बुरी तरह से पस्त लेकिन मजे में
मस्त करके ही छोड़ा.
फिर हम तीनों ने एक साथ चाय पी और कोई डेढ़ घंटे बाद मैंने हरीशजी से दुबारा चुदवाया. अबकी बार ऋचा हमारे पास में बैठी रही.
जब मैं अपने हास्टल को चलने लगी तो मैंने ऋचा को उसके चूचियों से पकड़ कर
दबाया और होठों पर जोर से चूमते हुए कहा- मेरी बुलबुल, अब तो हर रात तेरी
हसीन रात है. मजे से पापा से चुदाया कर.
चूत नाईट एंड गुड बाय!