Friday 27 January 2012

baadh me chudai

नमस्कार दोस्तों,

मेरा नाम रामलाल पांडू है और यूँ समझ लो की गहरी अँधेरी चूतों में ही मेरी दुनिया बस्ती है | यह किस्सा लगभग १ साल पहले गुजरात में आई बाढ का है जिस वक्त मेरी हूर - परी का बाढ़ के पानी और अँधेरे का डर ही मेरा सबसे बड़ा यादगार लम्हा बन गया | यह मेरी सच्ची कहानी है और तब की है जब मैं अपने चाचा के यहाँ किसी काम से एक महीने के लिए रहने आया हुआ था जोकि गुजरात के ही जिले में पढता और वहाँ की नदी के भी सबसे करीब था | मैं एक सिम्मी नाम की लड़की पर बचपन से फ़िदा था और हमेशा से घर के आँगन में बठकर उसे ही निहारा करता था पर उसने मुझे बचपन से मेरी जवानी तक एक बार भी मौका नहीं दिया | वो मस्त एक गोरी – चिट्टी मुसलमानी माल थी और कभी ज्यादा उसका घर से आना - जाना ना रहता पर उससे बात करने की बकड़चोदी के कारण मैं गॉंव के बुजुर्गों से भी मार खाते – खाते भी बचा था |

अब मैं शहर में सरकारी नौकरी कर रहा था इसीलिए अब सब मुझे इज्ज़त देते पर मेरी सपनो की हूर – परी ने मुझे कभी भी घास नहीं डाली | आखिर कार वो मौका आ ही गया जब एक दिन वहाँ अचानक बाढ़ आ गयी | हमारा परिवार सही - सलामत सुरक्षित जगह पर पहुँच गया था और सारे गॉंव वालों को जो नावें लेने आने वाली थी उसमें बैठने भी वाला था तभी मैंने देखा की सामने वाले छत पर से सिम्मी “बचाओ . . बचाओ” की आवाजें लगा रही थी | मैं सब कुछ छोड़ – छाड के वहाँ पहुच तो देखा की उसके घर में आग लग गयी है और उसके परिवार वाले उसे अकेला छोड़ अपनी जान बचाके भाग निकलें हैं | मैं जल्दी से वहाँ से कम्बल को उठाते हुए सिम्मी को ओढाया जिससे वो उसे आग ना पकड़ सके पर देखा की मेरी पीठ और पॉंव में आग के अंगारों के कारण छाले पड़ चुके थे | मैंने सिम्मी को गौद में उठाया और देखा की सारी नावें जा चुकी थी और वहाँ कोई भी नहीं बचा था इतने में जब पानी का बहाव बढ़ा लगा तो मैंने दिमाक लगाया और जल्दी से उसे अपने साथ लेकर गॉंव की सबसे पक्की ईमारत की चोटी पर जाके चढ गए |

वहाँ जब हांफते – हांफते हमने अपनी स्तिथि का नुमौना किया तो पता चला हमारे चारों पानी ही पानी था | सिम्मी डर के मारे रोने लगी और मैंने उसके पास जाकर उसका हौंसला बढ़ाया | अब जब सब ठीक हुआ तो हम एक दूसरे की आखिरी इक्षा पूछते हुए बात करने लगे और वही घुमती हुई हमारे बीच आ गयी तब उसने मुझसे पूछा,

सिम्मी – पांडू . . क्या सच में तुम मुझसे इतनी मोहब्बत करते हो . .??

मैं – हाँ बस तुमने मुझे कभी समझाने का मौका ही नहीं दिया |

इतने में सिम्मी मेरे गले लगकर माफ़ी मांगने लगी और शादी करने को कहने लगी | मैंने अपना हाथ काट अपने खून से उसे सिन्दूर लगा दिया और प्यार से उसे पुचकारते हुए कहा,

मैं – सिम्मी . .और हमारी स्वह्ग्रात का क्या . .??

सिम्मी – अब तो आखिरी पल है ये हमारे . .चलो जब तक जिंदा एक दूसरे में समां जायें ! !

मैंने तभी उसे चुमते हुए उसके बाल संवारके गर्दन को चूमने लगा और मैंने पहली बार सपनों से अलग अपनी हूर - परी के गीले होठों को चुसना शुरू कर दिया और धीरे – धीरे मैंने उसकी कुर्ती और सलवार को उतार दिया और खुद भी अपने कपड़ों को उतारके उसके साथ वहीँ पर लेट गया और हम एक दूसरे को बेसब्री से चूमने लगे | कुछ देर बाद मैं उसके गोरे – गोरे चुचों के साथ खेलता हुआ उसके चूचकों के किसी टोफ़ी की तरह चूसने लगा |
अब मैंने अपने हाथों से सिम्मी की पैंटी को भी नीचे कर उसकी चुत को सूंघते हुए अपनी जीभ को उसकी गुलाबी फांकों के बीच घुसाने लगा जिससे तड़प में उठकर सिम्मी “आःह्ह . .. अल्ल्लाह्ह्ह . .अल्ल्लाह्ह” करके सिस्कारियां भरने लगी | तभी मैंने उसकी गांड को अपनी तरफ कर थूक उसकी चुत पर लगा दिया और मेरा लंड सख्ती में आता हुआ उसकी लालो जैसी गांड के उभार को देखकर मचलते हुए उसकी चुत की फांक के बीचो - बीच सैट होकर एक जोर – दार धक्के के साथ अंदर चला गया और फिर जब मेरे सुपाडे को उसकी चुत का भूत चढा तो मैंने सिम्मी को कसकर पकड़ धक्के पे धक्के देने शुरू कर दिए |

हम पूरी रात बस पोसिशन बदल कर यौन – क्रिया ही करते रहे | बीच में कई बार मैंने उसे घोड़ी बनाकर भी चोदा तब मैं उसकी चुटिया को घोड़ी की लगाम की तरह इस्तेमाल करता | एक बार मैंने उसके गांड के छेद में अपना लंड देने की कोशिस की पर मेरे ज़ोरदार के धक्के के बावजूद मेरा सुपाडा ही गुस्ता की सिम्मी का दम्म निकल जाता | हम नंगे एक दूसरे के उप्पर लगभग सुबह के चार बजे तक सोये रहे और जब हेलिकॉप्टर हमें लेने आया तो हम उन्हें भी नंगे ही पाए गए | जब ये बात गॉंव वालो को पता चली तो वो मेरी सिम्मी से शादी करवाने वाले थे पर मैं चुपके से रात को ही शेहर भाग आया और यहाँ सब दोस्तों को यादगार लम्हा सुनाया जैसे की आपको | आखिर मेरी जिंदगी का मकसद ही यही है की मैं एक दिन चूतों का शहनशाह बन जाऊं |

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